Friday, October 31, 2025
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सुन्दर और बहुत सुन्दर

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

महिलाएँ या तो सुन्दर होती हैं, या बहुत सुन्दर। 

पैगाम

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

पिछली बार दिल्ली में अंतरराष्ट्रीय पुस्तक मेले से मैं कुरआन मजीद ले आया था। मेरा बहुत दिनों से मन था कि मैं कुरआन पढ़ूँ। स्कूल के दिनों में मैं चक्रवर्ती का अंक गणित और कॉलेज के दिनों में एन सुब्रह्मण्यम की लिखी फिजिक्स की किताब उपन्यास की तरह पढ़ जाता था। इतिहास, भूगोल और अर्थशास्त्र तो हफ्ते भर से ज्यादा की खुराक कभी नहीं रहे। ऐसे में क़ुरआन मजीद मेरे पास कैसे पड़ी रह गयी और मैंने क्यों इसे तभी नहीं पढ़ लिया ये मेरे सोचने का विषय है। 

सोच में बदलाव

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

कल मैंने लिखा था कि मुझसे मेरे एक परिचित ने पूछा था कि फेसबुक पर रोज लिख कर मैं अपना समय क्यों जाया करता हूँ, तो मैंने बता दिया था कि यही वो मेला है, जहाँ मुझे अपने सारे खोया हुए रिश्ते मिले हैं। 

प्यार

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

स्कूल में मास्टर साहब पढ़ा रहे थे। अचानक मास्टर ने क्लास में सभी बच्चों से पूछा, “बच्चों तुम्हें अचानक भगवान मिल जाएँ और तुमसे कहें कि तुम क्या माँगते हो, विद्या या धन, तो तुम क्या माँगोगे?”

अपराध बोध

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

मेरे बेटे को रास्ते में पाँच सौ रुपये का एक नोट गिरा हुआ मिला। उसने उस नोट को उठा कर जेब में रख लिया। लेकिन कुछ दूर जाकर वो वापस लौटा और उसने उस नोट को जेब से निकाल कर वहीं फेंक दिया।

अलविदा

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

मन था मुंबई ब्लास्ट पर लिखूँ। मन था कि याकूब को मिली फाँसी पर लिखूँ। कल देर रात दफ्तर में बैठा रहा, रात भर याकूब मेमन को बचाने की कोशिशों की खबरों का अपडेट करता रहा। सोचता रहा कि क्या लिखूँ।

चुप्पी

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

सर्दी के दिन थे। बुआ आँगन में चटाई बिछा कर अपने पोते को सरसों का तेल लगा रही थी। हम ढेर सारे बच्चे वहीं छुपन छुपाई खेल रहे थे।

मृत्यु घर वापसी?

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

माँ को पता था कि वो अब इस संसार से चली जाएगी। लेकिन माँ विचलित नहीं थी। उसे मृत्यु का खौफ नहीं था। माँ मुझे समझाती थी कि मौत के बाद का संसार किसी को नहीं पता, लेकिन मैंने ऐसा महसूस किया है कि यह घर वापसी की तरह है। 

मृत्यु घर वापसी? 

चाहत का असर

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

आज अजय देवगन और तब्बू से मुलाकात होगी। आज हम साथ लंच करेंगे। 

पाँच साल झेलें

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

एक साधु बाबा थे। बहुत पहुँचे हुए थे। उनके कई भक्त थे।

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