Thursday, October 30, 2025
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विकल्प न हो तो, जो है उसमें खुश रहिये

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

मेरे फुफेरे भाई के पास एक जोड़ी हवाई चप्पल थी। चप्पल क्या, समझिए ऊपर रंग उतरा हुआ फीता था, नीचे घिसी हुई ऐड़ी थी। ऐड़ी इतनी घिसी हुई कि पाँव फर्श छूता था। लेकिन थी चप्पल।

नाकाम मुखिया

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

आज मैं आपको आधुनिक भारत के प्राचीन इतिहास के संसार में ले चलूँगा। आज मैं उस कामचोर अंग्रेज इतिहासकार, विन्सेंट स्मिथ की पोल खोल कर रख दूँगा, जिसने यमुना तट पर कौरवों और पांडवों के बीच हुए महाभारत युद्ध के तुरन्त बाद की घटनाओं की अनदेखी कर अपना इतिहास सातवीं शताब्दी ईसा पूर्व के बीच से लिखना शुरू कर दिया।

‪‎यादें‬ – 13

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

अब यहीं से शुरू हो सकती है वो कहानी, जिसकी भूमिका बाँधते-बाँधते मैं यहाँ तक पहुँचा हूँ। 

‪‎यादें‬ – 12

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

अगर मैं जेपी आंदोलन, इमरजंसी, इन्दिरा गाँधी, दीदी, विमला दीदी को इतनी शिद्दत से लगातार याद करता हूँ, तो मुझे याद करना होगा 1984 की उस तारीख को जिस दिन इन्दिरा गाँधी की हत्या हुई थी। मुझे याद करना होगा उस 'जनसत्ता' अखबार को जहां मेरी किस्मत के फूल खिलने जा रहे थे। और मुझे याद करना होगा प्रभाष जोशी को, जिनसे 'जनसत्ता' में रहते हुए चाहे संपादक और उप संपादक के पद वाली जितनी दूरी रही हो, लेकिन अखबार छूटते ही हमने दिल खोल कर बातें कीं।

‪‎यादें‬ – 11

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

एक राजा था। दुष्ट और महामूर्ख था। एकबार एक साधु ने उसे दिव्य वस्त्र दिया और कहा कि ये ऐसा वस्त्र है, जो सिर्फ उसी व्यक्ति को नजर आयेगा, जिसकी आत्मा में छल-कपट न हो, जो अच्छा व्यक्ति हो। ऐसा कह कर उसने राजा के सारे कपड़े उतरवा दिये और उसे दिव्य वस्त्र पहना दिया।

‪‎यादें‬ -9

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

कल की मेरी पोस्ट पर अमित ने कमेंट के साथ एक तस्वीर चस्पा की, जिसमें श्रीमती गाँधी जमीन पर बैठी हैं और सामने पुलिस वाले खड़े हैं। आप में से बहुत से लोगों को यह तस्वीर याद होगी। बहुत से लोगों को समझ में नहीं आया होगा कि आखिर ये तस्वीर कब की है।

‪‎यादें‬

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

आदमी जिन्दगी का सफर तय करता है। मोटर-गाड़ियाँ सिर्फ सड़कों का सफर तय करती हैं। समय के साथ जिन्दगी के सफर में आदमी बहुत कुछ सीखता है और नया होता जाता है, जबकि सड़क के सफर में मोटर-कार घिसती हैं और पुरानी पड़ती जाती है। 

इमरजंसी – एक याद (4)

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

मैंने कहीं पढ़ा था कि एक बार एक अमेरिकी, जो घनघोर नास्तिक था, भारत घूमने आया और यहाँ से वापस जाते हुए वो अपने साथ भगवान की एक मूर्ति लेकर गया। लोगों को बहुत आश्चर्य हुआ कि ये नास्तिक अमेरिकी भला भारत से भगवान की मूर्ति क्यों खरीद लाया है। लोगों ने उससे पूछा कि भाई, इस मूर्ति में ऐसी क्या बात है। 

इमरजंसी – एक याद (3)

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

मैंने माँ को बहुत कम नाराज होते देखा था। उसकी आवाज तो कभी ऊँची होती ही नहीं थी। लेकिन उस दिन माँ बहुत तिलमिलाई हुयी थी। पता नहीं कहाँ से वो कुछ सुन आयी थी।

इमरजंसी – एक याद (2)

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

शायद पिताजी को इस बात का आभास हो चुका था कि दिल्ली में कुछ हो रहा है। वैसे तो पिताजी की आदत में शुमार था सुबह और शाम को रेडियो पर खबरें सुनना। सुबह आठ बजे रेडियो ऑन था।

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