Tag: संजय सिन्हा
रात के अंधेरे में जो करते हैं, वही हमें एक दिन उजाले में लाता है
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
एक नौजवान हर रात देर तक स्विमिंग पूल में तैरने का अभ्यास करता है। जब सारी दुनिया सो रही होती है, वो अंधेरे में अभ्यास कर रहा होता है।
मरी बकरी रख लोगों से वसूली
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
सुनिए, मेरी आज की कहानी पढ़ कर आप सिर्फ अपने तक मत रखिएगा। उसे अपनी वॉल पर साझा कीजिएगा, अपने दोस्तों को सुनाइएगा। दरअसल आज की मेरी कहानी हँसने या रोने की कहानी नहीं, बल्कि यह राह चलते किसी अनजान मुसाफिर को लूट लेने की कहानी है। कभी-कभी जिन्दगी में ऐसा हो जाता है कि आप ऐसे गिरोह के चक्कर में फंस जाते हैं कि आप चाह कर भी कुछ नहीं कर पाते। इसलिए ऐसी कहानियों को लोगों से साझा करके आप एक भलाई का काम करेंगे।
भाई की आँखों में चमक और बहन की आँखों में प्यार
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
माँ तीन दिनों के लिए पिताजी के साथ बाहर गई थी। मैं बिना माँ के एक दिन नहीं रह सकता था। माँ ने जाते हुए मुझसे दो साल बड़ी बहन को निर्देश दिया था कि संजू का ख्याल रखना। बहन चुपचाप खड़ी थी।
प्रेम, नफरत, तन्हाई और मिलन
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
सुबह जब नींद खुले तो अपने भीतर झाँकिए। मन की खिड़िकियों से देखिए कि कहीं आप अकेले तो नहीं।
पूरी जिन्दगी एक धोखे में कट गयी
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
कल जबसे मुरारी बापू का फोन आया कि संजय सिन्हा तुम बहुत अच्छी कहानियाँ लिखते हो, मैंने तुम्हारी तीनों किताबें पढ़ीं और अपनी कई कथाओं में तुम्हारा नाम लिया है, मेरे पाँव जमीन पर नहीं पड़ रहे।
नकली जिन्दगी जीते हुए असली लोग
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
आपको तो पता ही है कि मैं अभी पश्चिम बंगाल में तारापीठ मंदिर गया था। आपको ये भी पता है कि मैं वहाँ एक भाई-बहन से मिला था। आप ये भी जानते ही हैं कि उनकी कहानी सुनाने को मैं बेताब हूँ। पर आप ये नहीं जानते कि आख़िर उनकी कहानी मैं क्यों सुनाना चाहता हूँ?
कामयाबी की कहानी
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
कायदे से मुझे आज आपको पश्चिम बंगाल में तारापीठ की यात्रा पर मिले उस मासूम की कहानी सुनानी चाहिए, जिससे मिल कर मेरा कलेजा फट गया। मुझे उसकी उस बहन से आपको मिलाना चाहिए, जिस बहन ने भाई की क्षण भर की खुशी में अपनी जिन्दगी को जी लिया। पर आज मेरी हिम्मत नहीं हो रही आपको वो कहानी सुनाने की। उस कहानी को लिखने के लिए मुझे पहले अपने आँसू पोंछने पड़ेंगे। मुझे अपने फटे कलेजे को समेटना पड़ेगा।
संपूर्णता मिलन में है
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
उस 'येलेना' से मैं दुबारा नहीं मिल पाया, जिसकी मैंने चर्चा की थी। हालाँकि जब मैंने येलेना की कहानी आपको दुबारा सुनानी शुरू की थी, तब मैंने यही कहा था कि ताशकंद से लौटते हुए एयरपोर्ट पर नीली आँखों वाली जो लड़की मुझे मिली थी और जिसने मेरी मदद की थी, उसमें भी मुझे येलेना ही दिखी थी। चार दिन पहले मैंने येलेना की कहानी शुरू की थी और यह शुरुआत उसी मुलाकात के साथ हुई थी।
प्रेम रहित विवाह
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
कल देवघर पहुँचा। भोलेनाथ के दर्शन किए।
फिर सारे रास्ते येलेना की कहानी पर आपके कमेंट पढ़ता रहा। सोचता रहा उस फिल्मकार के बारे में जिसने 'प्यासा' और 'कागज' के फूल जैसी फिल्में बनाई थीं। दोनों फिल्में फ्लॉप साबित हुई थीं।
रिश्तों में जरूरी होता है भाव को समझना
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
दो दिनों से प्रेम पर लिख रहा हूँ।
क्या हो गया है मुझे?