Friday, November 22, 2024
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रूबी के दोषियों को कब मिलेगी सजा?

निभा सिन्हा :

ऐसा लग रहा है कि बिहार के इंटरमीडिएट टॉपर स्कैंडल के दोषियों को सजा दे कर सरकार अपने सारे दोषों से मुक्त होना चाहती है। सिस्टम पर ही बात करनी है तो सिर्फ बिहार ही क्यूँ, समूचे देश की ही बात कर लेते हैं। कभी-कभी एकाध रूबी राय जाने किस मंशा से पकड़ ली जाती हैं तो थोड़े दिन शोर शराबा होता है और फिर सब शांत, जैसे कि समाधान कर दिया गया हो समस्या का। 

रिश्ते जरूर बनाये, अकेलापन से बड़ी कोई सजा नहीं

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

मन में हजार कहानियाँ उमड़ती घुमड़ती रहीं। 

कल मुंबई में कुछ फोन चोरों को लोगों ने पकड़ कर चलती ट्रेन में नंगा करके बेल्ट से पीटा, मोबाइल से उनकी तस्वीरें उतारीं, तस्वीरें मीडिया तक पहुँचाई गयीं और इस तरह हमने देखा और दिखाया कि हम किस ओर बढ़ चले हैं। 

खैर, सुबह-सुबह बुरी खबरें मुझे विचलित करती हैं। 

बुरे काम का बुरा नतीजा

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

मेरी आज की पोस्ट मेरे लिए है। मुझे बहुत यंत्रणा से गुजरना पड़ा अपनी आज की पोस्ट को लिखते हुए। बहुत बार हाथ रुके, पर हिम्मत करके मैं लिखता चला जा रहा हूँ। आसान नहीं होता, अपने विषय में ऐसा लिखना।

अनुभव

प्रेमचंद :

प्रियतम को एक वर्ष की सजा हो गयी। और अपराध केवल इतना था, कि तीन दिन पहले जेठ की तपती दोपहरी में उन्होंने राष्ट्र के कई सेवकों का शर्बत-पान से सत्कार किया था। मैं उस वक्त अदालत में खड़ी थी। कमरे के बाहर सारे नगर की राजनैतिक चेतना किसी बंदी पशु की भाँति खड़ी चीत्कार कर रही थी।

आदमी की गलतियाँ उसकी थाली के नीचे छुपी होती हैं

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

आज लिखने में देर होने की बहुत बड़ी वजह है मेरी पत्नी को ऐसा लगना कि मेरा वजन बढ़ गया है, और मैं खाने-सोने-जागने पर नियन्त्रण नहीं रखता। 

कल रात घर में आलू-गोभी की दम वाली सब्जी बनी थी, पराठे बने थे। लेकिन मुझे उसमें से कुछ भी खाने को नहीं मिला।

“देंगे वही, जो पायेंगे इस जिन्दगी से हम!”

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

कई लोगों ने अनुरोध किया है कि मुझे त्रेता और द्वापर युग से निकल कर 21वीं सदी की बातें लिखनी चाहिए। मुझे प्यार मुहब्बत की कहानियाँ लिखनी चाहिए।

गलती चाहे जिससे हो, सजा मिलती ही है

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

"हे राम! मैं प्रचेता का दसवाँ पुत्र रत्नाकर, जिसने ‘मरा-मरा’ जपने में खुद को भुला दिया और जिसके शरीर को चीटिंयों ने बांबी समझ कर अपना परिवार बसा लिया, जिसे उन बांबियों की बदौलत वाल्मिकी नाम मिला है, वो आपके सामने हाथ जोड़े खड़ा है।

हे राम! मेरे पिता वशिष्ठ, नारद और भृगु के भाई हैं।

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