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सबसे खतरनाक, सपनों को मराना
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
सुबह नींद खुल गयी थी और कम्यूटर को ऑन करने जा ही रहा था कि दरवाजे पर घंटी बजी।
उनसे मिलें जो निराश हैं
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
मैं जिन दिनों जनसत्ता में काम करता था, मैंने वहाँ काम करने वाले बड़े-बड़े लोगों को प्रधान संपादक प्रभाष जोशी के पाँव छूते देखा था। शुरू में मैं बहुत हैरान होता था कि दफ्तर में पाँव छूने का ये कैसा रिवाज है। लेकिन जल्दी ही मैं समझने लगा कि लोगों की निगाह में प्रभाष जोशी का कद इतना बड़ा है कि लोग उनके पाँव छू कर उनसे आशीर्वाद लेना चाहते हैं। हालाँकि तब मैं कभी ऐसा नहीं कर पाया।
काशी गोशाला : ऐतिहासिक विरासत खतरे में
प्रेम प्रकाश :
यह तो सारी दुनिया जानती है कि महामना मालवीय ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की थी, पर यह बात बहुत कम लोग जानते होंगे कि महामना के सपनों का एक और संकल्प था, जो तबके भारत मे क्रान्ति का वाहक बना और आज घुट-घुट के साँसें ले रहा है। 136 साल पहले महामना ने बनारस में काशी गोशाला की स्थापना भी की थी, जो आठ गोशालाओं का एक पूरा संकुल था।
आम आदमी की पहली उड़ान
विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
आसमान में उड़ना भला किसे अच्छा नहीं लगता। हर कोई सोचता है कि काश उसके पास भी पंछियों की तरह परवाज होते और उड़ पाता। पर देश की आबादी के 2% लोग भी जीवन में उड़ पाते हैं। शायद नहीं। आप उड़कर दिल्ली से हैदराबाद दो घंटे में पहुँच सकते हैं पर ट्रेन से 20 घंटे में। पर उड़ना हमेशा महँगा सौदा रहा है। पर हम उस आदमी को कैसे भूल सकते हैं जिसने मध्य वर्ग के लोगों को उड़ने का सपना दिखाया।