Tag: सांप्रदायिकता
लिखिए जोर से लिखिए, किसने रोका है भाई!
संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
देश में बढ़ती तथाकथित सांप्रदायिकता से संतप्त बुद्धिजीवियों और लेखकों द्वारा साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने का सिलसिला वास्तव में प्रभावित करने वाला है। यह कितना सुंदर है कि एक लेखक अपने समाज के प्रति कितना संवेदनशील है, कि वह यहाँ घट रही घटनाओं से उद्वेलित होकर अपने सम्मान लौटा रहा है। कुछ ने तो चेक भी वापस किये हैं। सामान्य घटनाओं पर यह संवेदनशीलता और उद्वेलन सच में भावविह्वल करने वाला है।
कृपया काम अधिक, छुट्टियाँ कम कीजिए जज साहब
अभिरंजन कुमार :
न्यायाधीशों की कांफ्रेंस का इस आधार पर विरोध करना कि वह गुड फ्राइडे के दिन क्यों रखी गयी, जस्टिस जोसेफ कुरियन की सांप्रदायिक, संकीर्ण और कुंठित सोच को दर्शाता है।
कौन उलझा रहा है मोदी को विवादों में?
शिव ओम गुप्ता :
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चंद दिनों के अंदर अपने दल के सांसदों को सँभल कर बोलने की नसीहत देनी पड़ गयी। मंगलवार 16 दिसंबर को भाजपा के संसदीय बोर्ड की बैठक में उन्होंने सांसदों को सचेत किया कि वे 'लक्ष्मण रेखा' पार न करें।
जब सत्ता ही देश को ठगने लगे तो!
पुण्य प्रसून बाजपेयी, कार्यकारी संपादक, आजतक :
एक तरफ विकास और दूसरी तरफ हिन्दुत्व। एक तरफ नरेन्द्र मोदी दूसरी तरफ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ। एक तरफ संवैधानिक संसदीय राजनीति तो दूसरी तरफ हिंदू राष्ट्र का ऐलान कर खड़ा हुआ संघ परिवार। और इन सबके लिये दाना-पानी बनता हाशिये पर पड़ा वह तबका, जिसकी पूरी जिन्दगी दो जून की रोटी के लिये खप जाती है।
धर्म-परिवर्तन छोड़ो, जाति-परिवर्तन शुरू करो!
अभिरंजन कुमार, पत्रकार एवं लेखक :
आप लोग धर्म-परिवर्तन पर बवाल कीजिए, मेरा सवाल यह है कि हम धर्म-परिवर्तन कर सकते हैं, लेकिन जाति-परिवर्तन क्यों नहीं?