Tag: साधु
रिश्तों की फसल लहलहाएगी

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
कानपुर में मेरे एक ताऊजी रहते थे। बड़ा सा बंगला था और पूरा परिवार संयुक्त रूप से रहता था। दद्दा, ताऊजी, ताईजी, उनके बच्चे। इत्तेफाक से मेरी बड़ी मौसी भी उनके पड़ोस में ही रहती थीं। मौसी के साथ उनकी देवरानी भी थीं। तो इस तरह ताऊजी के बच्चे, मेरी मौसी के बच्चे और मौसी की देवरानी के बच्चे सब साथ पल रहे थे।
नशा करके वाला आदमी तन के साथ मन भी गंवाता है

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
एक साधु थे। कहीं जा रहे थे। रास्ते में कुछ बदमाश लड़कों ने उन्हें घेर लिया। पूछा कि महाराज, कहाँ जा रहे हैं? साधु ने कहा कि नदी में नहाने जा रहा हूँ। लड़कों ने उनसे कहा कि महाराज, आपने जिन्दगी में कभी पाप किया है या नहीं? साधु महाराज कहने लगे कि नहीं, कभी नहीं। मैं तो साधु हूँ, पाप से मेरा क्या नाता?
“नहीं? यूँ ही कभी मदिरापान? किसी स्त्री के साथ संबंध?”
भूमि नहीं, मन बंजर होता है

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
कहानी क्या होती है?
घटनाओं का ब्योरा? नहीं। घटनाओं का ब्योरा तो रिपोर्टिंग हो गयी। रिपोर्टिंग मतलब, जो देखा उसे बयाँ कर दिया।
बाबाजी का भोग

प्रेमचंद :
रामधन अहीर के द्वार पर एक साधु आकर बोला- बच्चा तेरा कल्याण हो, कुछ साधु पर श्रद्धा कर।
पाँच साल झेलें

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
एक साधु बाबा थे। बहुत पहुँचे हुए थे। उनके कई भक्त थे।
यादें – 11

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
एक राजा था। दुष्ट और महामूर्ख था। एकबार एक साधु ने उसे दिव्य वस्त्र दिया और कहा कि ये ऐसा वस्त्र है, जो सिर्फ उसी व्यक्ति को नजर आयेगा, जिसकी आत्मा में छल-कपट न हो, जो अच्छा व्यक्ति हो। ऐसा कह कर उसने राजा के सारे कपड़े उतरवा दिये और उसे दिव्य वस्त्र पहना दिया।