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साहित्यकारों, कलाकारों और इतिहासकारों का कुचक्र
पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :
इस देश को जिन्होंने नोचा, खसोटा, लूटा और राज किया, वर्तमान से इस कदर बौखला उठे हैं कि उन्हें समझ नहीं आ रहा कि वे क्या करें? इसमें शामिल हैं हवाला कारोबारी, तस्कर, हथियारों के दलाल, वे जिन्हें आजादी बाद रेवड़ी की मानिंद बांटे गये थे कोटा-परमिट और जिनके बल पर काला बाजारी से रातों रात धन कुबेर बन गये वे और उनके वंशज। इनके अलावा वे तथाकथित प्रगतिशील- वामपंथी जिन्होंने समाजवादी विचारधारा के नाम पर आधी सदी से भी ज्यादा समय तक मलाई खायी। वे समाज में आसानी से बुद्धिजीवी का खुद पर ठप्पा लगाने में सफल हो गये। इसी विचारधारा के लोगों में पनपे साहित्यकारों, कलाकारों, कला प्रेमियों और इतिहासकारों की गणेश परिक्रमा ने उन्हें महिमा मंडित किया।
लोकतत्व के अभाव में रचे साहित्य का विधवा विलाप
संदीप त्रिपाठी :
साहित्यकार कौन है? कहानियाँ, कविताएँ, नाटक, उपन्यास, ललित निबंध, व्यंग्य, आलोचना लिखने वाला साहित्यकार है? आप गोपाल दास नीरज, उमाकांत मालवीय़ को साहित्यकार मानते हैं? कुँवर बेचैन, सुरेंद्र शर्मा, काका हाथरसी, हुल्लड़ मुरादाबादी, चकाचक बनारसी साहित्यकार हैं या नहीं? ओमप्रकाश शर्मा, गुलशन नंदा, सुरेंद्र मोहन पाठक, वेदप्रकाश शर्मा साहित्यकार हैं या नहीं? राजन-इकबाल सिरीज लिखने वाले एससी बेदी क्या हैं? विज्ञान कथाएँ लिखने वाले गुणाकर मुले साहित्यकार माने जायेंगे या नहीं? बच्चों के लिए साहित्य रचने वाले क्या हैं?
आभासी सांप्रदायिकता के खतरे
संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
जिस तरह का माहौल अचानक बना है, वह बताता है कि भारत अचानक अल्पसंख्यकों (खासकर मुसलमान) के लिए एक खतरनाक देश बन गया है और इसके चलते उनका यहाँ रहना मुश्किल है। उप्र सरकार के एक मंत्री यूएनओ जाने की बात कर रहे हैं तो कई साहित्यकार अपने साहित्य अकादमी सम्मान लौटाने पर आमादा हैं। जाहिर तौर पर यह एक ऐसा समय है, जिसमें आयी ऐसी प्रतिक्रियाएँ हैरत में डालती हैं।