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क्या शिक्षक हार रहे हैं?
संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
कई बार लगता है कि विचारधारा राष्ट्र से बड़ी हो गयी है। पार्टी, विचारधारा से बड़ी हो गयी है, और व्यक्ति पार्टी से बड़ा हो गया है। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में रहते हुए, जैसी बेसुरी आवाजें शिक्षा परिसरों से आ रही हैं, वह बताती हैं कि राजनीति और राजनेता तो जीत गये हैं, किंतु शिक्षक और विद्यार्थी हार रहे हैं। समाज को बाँटना, खंड-खंड करना ही तो राजनीति का काम है, वह उसमें निरंतर सफल हो रही है। हमारे परिसर, विचारधाराओं की राजनीति के इस कदर बंधक बन चुके हैं, कि विद्यार्थी क्या, शिक्षक भी अपने विवेक को त्याग कर इसी कुचक्र में फँसते दिख रहे हैं।
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