Monday, June 9, 2025
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हिन्दी शूड बी प्रोमोटेड !!

अजय अनुराग :

हिन्दी के प्रति हमारा दृष्टिकोण या तो सहानुभूति का रहा है या फिर संकोच का। सहानुभूति रखने के कारण हम उसके अस्तित्व को लेकर दुखी रहते हैं तो संकोच के कारण अंग्रेजी के समक्ष हम उसे दोयम दर्जे की भाषा समझते हैं।

हिन्दी में नौकरी की संभावना कहाँ है

संजय कुमार सिंह, संस्थापक, अनुवाद कम्युनिकेशन:   

हिन्दी में नौकरी की संभावनाएँ लगातार कम हुई हैं। हो रही हैं। एक समय था जब हिन्दी टाइपराइटर पर कोई ऐसा-वैसा बैठ भी नहीं सकता था। टाइपिंग से अनजान व्यक्ति शायद एक शब्द भी टाइप नहीं कर पाता। अगर हिन्दी में काम करना है, कुछ भी, कितना भी तो हिन्दी टाइपिस्ट के बिना काम नहीं हो सकता था। इसलिए ज्यादातर दफ्तरों में बिना काम के भी टाइपिस्ट होते थे या वहाँ काम ही ना हो तो अलग बात है।

हिन्दी की जरूरत किसे है?

संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय : 

अब जबकि भोपाल में 10 सितंबर से विश्व हिन्दी सम्मेलन प्रारंभ हो रहा है, तो यह जरूरी है कि हम हिन्दी की विकास बाधाओं पर बात जरूर करें। यह भी पहचानें कि हिन्दी किसकी है और हिन्दी की जरूरत किसे है?

आओ, हिन्दी की भी सोच लें भाई

संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय : 

सितंबर का महीना आ रहा है। हिन्दी की धूम मचेगी। सब अचानक हिन्दी की सोचने लगेंगें। सरकारी विभागों में हिन्दी पखवाड़े और हिन्दी सप्ताह की चर्चा रहेगी। सब हिन्दीमय और हिन्दीपन से भरा हुआ। इतना हिन्दी प्रेम देख कर आँखें भर आएँगी। वाह हिन्दी और हम हिन्दी वाले। लेकिन सितंबर बीतेगा और फिर वही चाल जहाँ हिन्दी के बैनर हटेंगें और अंग्रेजी का फिर बोलबाला होगा। इस बीच भोपाल में विश्व हिन्दी सम्मेलन भी होना है। यहाँ भी दुनिया भर से हिन्दी प्रेमी जुटेगें और हिन्दी के उत्थान-विकास की बातें होंगी। ऐसे में यह जरूरी है कि हम हिन्दी की विकास बाधा पर भी बात करें। सोचें कि आखिर हिन्दी की विकास बाधाएँ क्या हैं?

रास्ते हैं प्यार के, चलिये संभल के

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

मुझे यकीन है कि आप में से कोई न कोई कीनिया की मिस कुवी को जरूर जानता होगा। मिस कुवी पिछले साल भर से दोस्ती निवेदन मेरे पास भेज रही हैं।

मोदी जी ने विदेशी मोर्चे पर देश को निर्विवाद महिमा मंडित किया

पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :

दो दिन पहले मैं एक चैनल पर कांग्रेस के प्रवक्ता मीम अफजल को सुन रहा था..कह रहे थे, ' भारतीय प्रधान मन्त्री विदेश दौरे को इवेंट क्यों बना देते हैं। इतनी हाइप हो जाती है कि दौरे का उद्देश्य ही उसमें गुम होकर रह जाता है।' अफजल साहब खुद राजनयिक रहे हैं।

बौद्धिक विमर्शों से नाता तोड़ चुके हैं हिन्दी के अखबार

संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्याल

हिन्दी पत्रकारिता को यह गौरव प्राप्त है कि वह न सिर्फ इस देश की आजादी की लड़ाई का मूल स्वर रही, बल्कि हिन्दी को एक भाषा के रूप में रचने, बनाने और अनुशासनों में बांधने का काम भी उसने किया है। हिन्दी भारतीय उपमहाद्वीप की एक ऐसी भाषा बनी, जिसकी पत्रकारिता और साहित्य के बीच अंतसंर्वाद बहुत गहरा था।

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