Tag: Akhilesh Yadav
तो उत्तर प्रदेश चुनाव में समाजवादी पार्टी लाई कब्रिस्तान?
अभिरंजन कुमार, वरिष्ठ पत्रकार :
जब मैंने प्रधानमंत्री मोदी से पूछा कि ‘चुनाव के उत्सव में कब्रिस्तान और श्मशान कहाँ से ले आए मोदी जी?’, इसके बाद मेरे पास तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं आई हैं। जो प्रतिक्रियाएं मेरे सवाल के साथ सहमति में आईं, उन्हें सामने रखने की जरूरत नहीं है, क्योंकि उनकी बात तो मैं कह ही चुका हूँ, लेकिन जो प्रतिक्रियाएं असहमति में आईं हैं, उन्हें स्पेस देना भी जरूरी लग रहा है।
सपा के लठबाजी प्रहसन के फलितार्थ
राजीव रंजन झा :
उनके 'नेताजी' (हमारे नेताजी तो एक ही हैं, आजादी से पहले वाले) भी पार्टी में हैं। चच्चा भी पार्टी में हैं। चच्चा चुनाव भी लड़ेंगे। सबकी सूचियों का भी मिलान हो रहा है, सबका मान रखा जा रहा है। पार्टी भी एक है। चुनाव चिह्न भी सलामत है। बस बीच में डब्लूडब्लूई स्टाइल में जबरदस्त जूतमपैजार की नौटंकी से जनता का दिल खूब बहलाया गया। इस नौटंकी के नतीजे -
हम समाजवाद की ओर बढ़ रहे हैं – मुलायम सिंह
डॉ. मुकेश कुमार, वरिष्ठ पत्रकार व लेखक :
सुबह से ही नेताजी के आवास पर भारी भीड़ देख कर मैं थोड़ा चकित हुआ। कारण मेरी समझ में नहीं आया। उनका जन्मदिन निकल चुका है। शाही सवारी और पचहत्तर फुट के केक के किस्से भी अब लोग भूलने लगे हैं। मैंने सोचा हो सकता है कि उनका कोई और सगा-संबंधी विधायक-सांसद बन गया होगा, इसलिए जलसे जैसा माहौल है।
सामाजिक न्याय की ताकतों की लीलाभूमि पर आखिरी जंग
संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में पुराने जनता दल के साथियों का साथ आना बताता है कि भारतीय राजनीति किस तरह ‘मोदी इफेक्ट’ से मुकाबिल है।
अबकी बार, क्या क्षेत्रीय दल होंगे साफ?
क़मर वहीद नक़वी, वरिष्ठ पत्रकार :
राजनीति से इतिहास बनता है! लेकिन जरूरी नहीं कि इतिहास से राजनीति बने! हालाँकि इतिहास अक्सर अपने आपको राजनीति में दोहराता है या दोहराये जाने की संभावनाएँ प्रस्तुत करता रहता है!
लोक लुभावन योजनाएँ हों या कठोर निर्णय?
बृजेश श्रीवास्तव :
कल दो बड़ी खबरें आयीं, एक नयी दिल्ली से और दूसरी उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से। नयी दिल्ली की खबर रेल मंत्री जी द्वारा रेल यात्री किराये और माल भाड़े में बढ़ोतरी की थी।