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ये तीस जनवरी मार्ग है….
विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
ये तीस जनवरी मार्ग है। एक सड़क का नाम है। पर ऐसी सड़क जो एक एतिहासिक घटना की गवाह बन गयी। एक महान आत्मा की यात्रा जो गुजरात के शहर पोरबंदर से शुरू हुई थी यहाँ आकर खत्म होती है। वह 30 जनवरी 1948 का दिन था जब 79 साल की एक महान आत्मा हे राम के शब्द के साथ इस दुनिया से कूच कर गयी। हालाँकि बापू तो आत्मशक्ति से 125 साल जीना चाहते थे। पर नियति को कुछ और ही मंजूर था।
राजघाट में सो रहा है दुनिया का सबसे बड़ा फकीर
विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
नाम राजघाट है पर यहाँ सो रहा है सदी का सबसे बड़ा फकीर। एक ऐसा फकीर जिसे नमन करने दुनिया भर के लोग आते हैं। शायद पूरी दुनिया में बापू ऐसे पहले आजादी की लड़ाई के अगुवा रहे होंगे जिन्होंने आजादी मिल जाने के बाद कोई सत्ता नहीं ग्रहण की। सरकार में कोई पद नहीं लिया। महलों में रहने नहीं गए।
बापू ने डाली थी बुनियादी शिक्षा की नींव
विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
बेतिया शहर के पास कुमारबाग के पास है वृंदावन आश्रम। यह वही आश्रम है, जहाँ बापू पन्डित प्रजापति मिश्र, गुलाब खाँ व पीर मुहम्मद मुनिस के द्वारा निमन्त्रण पर गाँधी सेवा संघ के पंचम अधिवेशन के के मौके पर 2 मई, 1939 को एक बार फिर चंपारण की धरती पर पहुँचे थे।
पटना से बेतिया का सफर – चंपारण की धरती को नमन
विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
पटना से बेतिया का सफर। पटना के मीठापुर बस स्टैंड से बेतिया के लिए रात्रि सेवा में कई बसें चलती हैं। इनमें एसी और स्लीपर बसें भी हैं। हमारे दोस्त इर्शादुल हक ने बताया था कि पटना से बेतिया के लिए सबसे अच्छी बसें चलती हैं।