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संपूर्णता मिलन में है

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
उस 'येलेना' से मैं दुबारा नहीं मिल पाया, जिसकी मैंने चर्चा की थी। हालाँकि जब मैंने येलेना की कहानी आपको दुबारा सुनानी शुरू की थी, तब मैंने यही कहा था कि ताशकंद से लौटते हुए एयरपोर्ट पर नीली आँखों वाली जो लड़की मुझे मिली थी और जिसने मेरी मदद की थी, उसमें भी मुझे येलेना ही दिखी थी। चार दिन पहले मैंने येलेना की कहानी शुरू की थी और यह शुरुआत उसी मुलाकात के साथ हुई थी।
फेसबुक का लाइकाचार

आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
जी मैं पुराने स्कूल का हूँ, कई महिला मित्र फेसबुक पर प्रोफाइल पिक अपडेट करती हैं, पर मैं उन्हे लाइक नहीं करता, मतलब लाइक करने का मन हो तो भी लाइक के सिंबल को क्लिक ना करता। सुंदर, बहुत स्मार्ट लिखने का दिल करता है, पर, पर उन्ही महिला मित्रों को बाक्सर भाई भी मेरे मित्र हैं, जो बरसों यह उद्घोषणा करते आ रहे हैं कि उनकी बहन की ओर आँख उठाकर भी किसी ने देखा तो उसे खल्लास कर देंगे। किसी महिला मित्र की फोटो को लाइक करने की इच्छा की क्षणों में वह बाक्सर भाई यह कहता दिख जाता है-अच्छा बेट्टे, मेरी बहन की तरफ ना सिर्फ तूने आँख उठाकर देखा, बल्कि उसे लाइक तक किया, आज निकलियो घर से।
विश्वकर्मा ने 24 घंटे में बनवाया- द्वारकाधीश का मंदिर

विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
भगवान कृष्ण अपने यादव परिवार के साथ मथुरा छोड़ कर सौराष्ट्र आ जाते हैं। वे अपने बसेरे के इंतजाम के लिए समुद्र के किनारे घूम रहे थे। तभी उन्हें यहाँ की भूमि से लगाव हो जाता है। फौरन विश्वकर्मा जी को बुलाया गया और अपनी राजधानी यहीं बनाने का इरादा जताया।
‘फेरिहा’

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
'फेरिहा' एक चौकीदार की बेटी का नाम है। टर्की में रहने वाली फेरिहा मेहनत और लगन से अच्छे कॉलेज में दाखिला पा लेती है और खूब पढ़ना चाहती है। लेकिन उसके पिता को उसकी शादी की चिंता है। उन्होंने अपनी बिरादरी और हैसियत जैसे एक परिवार के लड़के को फेरिहा के लिए पसंद कर रखा है। पिता की निगाह में वही लड़का फेरिहा के लिए उपयुक्त है। वो जानते हैं कि वो लड़का भी फेरिहा को पसंद करता है, उसकी सुंदरता पर मरता है।
स्त्री और पुरुष

प्रेमचंद :
विपिन बाबू के लिए स्त्री ही संसार की सुन्दर वस्तु थी। वह कवि थे और उनकी कविता के लिए स्त्रियों के रूप और यौवन की प्रशंसा ही सबसे चित्तकर्षक विषय था। उनकी दृष्टि में स्त्री जगत् में व्याप्त कोमलता, माधुर्य और अलंकारों की सजीव प्रतिमा थी। जबान पर स्त्री का नाम आते ही उनकी आँखें जगमगा उठती थीं, कान खड़े हो जाते थे, मानो किसी रसिक ने गान की आवाज सुन ली हो।
बदलता भोपाल

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
आधी रात को चार शराबियों की निगाह ताजमहल पर पड़ गयी। चारों को ताजमहल बहुत पसन्द आया। उन्होंने तय कर लिया इतनी सुन्दर इमारत तो उनके शहर में होनी चाहिए थी। पर कमबख्त सरकार कुछ करती ही नहीं। क्यों न हम चारों रात के अंधेरे में सफेद संगमरमर की इस इमारत को चुरा कर अपने शहर ले चलें!
सुन्दर और बहुत सुन्दर

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
महिलाएँ या तो सुन्दर होती हैं, या बहुत सुन्दर।
पराये मर्द का लाइक

आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार
शिष्टाचार अलग है और फेसबुक का शिष्टाचार अलग है।
हुमायूँ का मकबरा : इससे मिली थी ताजमहल बनाने की प्रेरणा

विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
दिल्ली का हुमायूँ का मकबरा ताज महल के जैसा खूबसूरत है। कुछ सामन्यताएँ ताजमहल और हुमायूँ के मकबरे में।



संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
प्रेमचंद :





