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मुलायम मलमल बनाने वाले देश का दिल कठोर
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
आज ज्यादा नहीं लिखूँगा।
सच पूछिए तो आज बिल्कुल नहीं लिखूँगा। मेरा मन ही नहीं है आज कुछ भी लिखने का। कल से मन बहुत उदास है। कल ही बांग्लादेश से उस बच्ची का शव यहाँ लाया गया, जिसने अभी जिन्दगी की राह पर अपना पहला कदम ही आगे बढ़ाया था।
योग करने पर हम नहीं, हमारा शरीर बोलता है
विनीत कुमार, मीडिया आलोचक:
योग, जिम, वॉक, डायटिंग। शरीर को बेहतर रखने के ये वो तरीके हैं, जिसे ईमानदारी से किए जाएँ तो अलग से छापा मार टीशर्ट पहन कर दुनिया को बताने की जरूरत नहीं पड़ती। लोग आपके शरीर को देखते ही पूछने लग जाते हैं- आप योग करते हो, आपने जिम ज्वाइन किया है, आप डाइट चार्ट फॉलो करते हो।?
आत्मा से रिश्ता
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
एक पिता ने मुझसे गुहार लगायी है कि मैं उनके बेटे को समझाऊँ। बेटा पिता की बात नहीं सुनता। वो पिता के साथ अभद्र व्यवहार करता है। मैंने सोच लिया था कि मैं चौथी कक्षा में पढ़ी वो कहानी उसे जरूर सुनाऊँगा, जिसे पढ़ते हुए मैं बहुत गहरी सोच में डूब जाया करता था।
समय
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
हजार जन्मों के चक्र से गुजरता हुआ मैं भी 'समय' के कालखंड पर मनुष्य के शरीर में मौजूद हूँ।
मन की खुशी
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मुझे ठीक से याद है कि गुलबवा की कहानी किसने सुनायी थी। इस सच्ची कहानी सुनाते हुए उसने बताया था कि हर आदमी में दो आदमी रहते हैं। एक बाहर का आदमी और दूसरा भीतर का आदमी। भीतर का आदमी मन है, बाहर का आदमी तन है।
गोश्त
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
आज जो कहानी मैं लिख रहा हूँ, वो मुझे नहीं लिखनी थी। आज मेरे मन में था कि मैं उस राजा की कहानी आपको सुनाऊँगा, जिसने एक दिन मुनादी पिटवा कर अपना सब कुछ लुटा दिया था।