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आँखों को धोखा नहीं देना चाहिए

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
फातमागुल एक लड़की का नाम है। एक दिन शहर से कुछ लड़के मौज-मस्ती करने शहर से दूर निकलते हैं और एक गाँव से गुजरते हुए उनकी निगाह फातमागुल पर पड़ती है। फातमागुल सुंदर, सरल और किशोरावस्था से निकल रही बच्ची है। वो गाँव के ही एक लड़के से प्रेम करती है।
मरने वाली लड़की ही क्यों?

संजय कुमार सिंह, संस्थापक, अनुवाद कम्युनिकेशन :
इसका जो कारण मुझे समझ में आता है वह यही है कि अपने यहाँ लड़कियों को भावनात्मक रूप से मजबूत बनाने की अवधारणा ही नहीं है। लड़कियाँ आम तौर पर पिता के करीब होती हैं और पिता से जिन विषयों पर बात होती है उसकी सीमा है। ऐसे में जब वे फँसती हैं तो उनकी परेशानी शेयर करने वाला कोई नहीं होता। खासतौर से जब मामला ब्वायफ्रेंड का हो।
आइए खूबियाँ ढूँढते हैं

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
मैंने कल लिखा था न कि मेरी मुलाकात दिल्ली वाले लड़के से होगी।
आँखों से सितारा बनते देखा

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
आज मैं दिल्ली के उस लड़के से फिर मिलूँगा जो लाखों-करोड़ों लोगों के लिए एक काल्पनिक संसार बन गया है। मैं उससे जब भी मिलता हूँ, यह सोच कर मन ही मन हैरान होता हूँ कि अगर वो वो नहीं होता तो क्या होता?
माता का हृदय

प्रेमचंद :
माधवी की आँखों में सारा संसार अँधेरा हो रहा था। कोई अपना मददगार न दिखायी देता था। कहीं आशा की झलक न थी। उस निर्धन घर में वह अकेली पड़ी रोती थी और कोई आँसू पोंछनेवाला न था। उसके पति को मरे हुए 22 वर्ष हो गये थे। घर में कोई सम्पत्ति न थी। उसने न-जाने किन तकलीफों से अपने बच्चे को पाल-पोसकर बड़ा किया था। वही जवान बेटा आज उसकी गोद से छीन लिया गया था और छीननेवाले कौन थे ? अगर मृत्यु ने छीना होता तो वह सब्र कर लेती। मौत से किसी को द्वेष नहीं होता। मगर स्वार्थियों के हाथों यह अत्याचार असह्य हो रहा था।