Tag: Children
रिश्तों को दस्तक दीजिए
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
कोई 60 साल पुरानी बात है, एक लड़की की बहुत धूम-धाम से शादी हुई। शादी के बाद लड़की के पाँच बच्चे हुए। चार बेटियाँ, एक बेटा। पूरा परिवार खुश।
पहले बेटियों की शादी हुई, फिर बेटे की। कुछ दिनों बाद पति का निधन हो गया। बेटियाँ ससुराल में सेटल हो चुकी थीं, बेटा अमेरिका में सेटल हो गया था। रह गयी थी माँ।
आज की मस्ती कल भारी पड़ेगी
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
मेरी आज की कहानी बड़ों से ज्यादा बच्चों के लिए है। अब बच्चे तो मेरे दोस्त हैं नहीं, तो बच्चों के पापाओं और बच्चों की मम्मियों से मैं अनुरोध करूँगा कि मेरी आज की पोस्ट वो अपने बच्चों को जरूर सुनाएँ।
बच्चों को मिले विश्वास और भरोसा
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
मैंने बताया था न कि घर की सफाई में मेरे हाथ बहुत सी पुरानी यादें लगीं।
यादों के उसी पिटारे से मैं आपके लिए कल अपनी काठमांडू यात्रा की कहानी ले कर आया था। मैंने आपको कल ही बताया था कि यादों के उन्हीं पुलिंदे में मेरे अमेरिका प्रवास के दौरान लिखे कुछ लेख हाथ लगे। इनमें से कुछ तो मैंने अमेरिका से दिल्ली फैक्स के जरिए Sanjaya Kumar Singh को भेजे थे और वो यहाँ जनसत्ता में छपे भी थे। बात अमेरिका के न्यूयार्क शहर में ट्वीन टावर पर हुए हमले के दिन की है।
स्वर्ग की देवी
प्रेमचंद :
भाग्य की बात! शादी-विवाह में आदमी का क्या अख्तियार! जिससे ईश्वर ने, या उनके नायबों- ब्राह्मणों ने तय कर दी, उससे हो गयी। बाबू भारतदास ने लीला के लिए सुयोग्य वर खोजने में कोई बात उठा नहीं रखी। लेकिन जैसा घर-वर चाहते थे, वैसा न पा सके। वह लड़की को सुखी देखना चाहते थे, जैसा हर एक पिता का धर्म है; किंतु इसके लिए उनकी समझ में सम्पत्ति ही सबसे जरूरी चीज थी। चरित्र या शिक्षा का स्थान गौण था। चरित्र तो किसी के माथे पर लिखा नहीं रहता और शिक्षा का आजकल के जमाने में मूल्य ही क्या? हाँ, सम्पत्ति के साथ शिक्षा भी हो तो क्या पूछना! ऐसा घर उन्होंने बहुत ढूँढ़ा, पर न मिला। ऐसे घर हैं ही कितने जहाँ दोनों पदार्थ मिलें? दो-चार मिले भी तो अपनी बिरादरी के न थे। बिरादरी भी मिली, तो ज़ायजा न मिला; जायजा भी मिला तो शर्तें तय न हो सकीं।
यू डोंट नो एनीथिंग ना
आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार
डाँटे या डाँट खायें- फंडामेंटल सवाल ये ही है, जिन घरों में बच्चे हैं, वहाँ पेरेंट्स क्या करें।
उलटे चाँद के देश में!
कमर वहीद नकवी , वरिष्ठ पत्रकार :
जिस देश में चाँद उलटा निकल सकता है, हम उस देश के वासी हैं! बात अफवाह की नहीं है, जो अभी आये भूकम्प के बाद फैली और तेजी से फैली, लेकिन उतनी ही तेजी से खारिज भी हो गयी। बात अफ़वाह के बहुत आगे की है! और बात मामूली नहीं, बहुत गहरी है।
बच्चों की इच्छा बनाम खलनायक पिताजी
विकास मिश्रा, आजतक :
आठवीं या नौवीं में पढ़ रहा था। पिता जी के साथ शहर के बाजार में गये। मेरा मन एक चश्मे पर आ गया। मैंने खरीदने की जिद की, पिताजी ने मना कर दिया। मेरा ख्याल था कि चश्मा पहनकर हीरो लगूँगा।