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डिमॉन्सट्रेशन

प्रेमचंद :
महाशय गुरुप्रसादजी रसिक जीव हैं, गाने-बजाने का शौक है, खाने-खिलाने का शौक है और सैर-तमाशे का शौक है; पर उसी मात्र में द्रव्योपार्जन का शौक नहीं है। यों वह किसी के मुँहताज नहीं हैं, भले आदमियों की तरह हैं और हैं भी भले आदमी; मगर किसी काम में चिमट नहीं सकते। गुड़ होकर भी उनमें लस नहीं है। वह कोई ऐसा काम उठाना चाहते हैं, जिसमें चटपट कारूँ का खजाना मिल जाय और हमेशा के लिए बेफिक्र हो जायँ। बैंक से छमाही सूद चला आये, खायें और
सूरज एलटीसी पर

आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार
मिसेज गुप्ता इस बार मलेशिया हो कर आयी हैं और तुम मिस्टर श्रीवास्तव का क्या मुकाबला करोगे, वो तो यूरोप जा रहे हैं।
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प्रेमचंद :
आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार





