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संसदीय कुंभकर्ण की करवट
डॉ वेद प्रताप वैदिक, राजनीतिक विश्लेषक :
कांग्रेस को क्या हो गया है? वह एक स्वस्थ विपक्ष की भूमिका क्यों नहीं निभाना चाहती है? संसद का यह पूरा सत्र ही उसने लगभग बर्बाद कर दिया। उसने ऐसे-ऐसे विधेयकों का विरोध किया, जो उसने स्वयं सत्ता में रहते हुए पेश किए थे।
आज सोनिया और राहुल ही आशा हैं
डॉ वेद प्रताप वैदिक, राजनीतिक विश्लेषक :
कांग्रेस जैसी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के नेताओं में अब थोड़ा-बहुत साहस पैदा हो गया है। वे मुँह खोलने लगे हैं। अपने मालिकों के सामने ‘जी-हुजूर’ बोलने के अलावा वे कुछ भी बोलने की हिम्मत नहीं करते थे। पंजाब के कांग्रेसी नेता जगमीत सिंह बरार ने काफी प्राणलेवा बयान दे दिया है।
नेता विपक्ष- परंपरा, धारा और भावना का इम्तहान
रवीश कुमार, वरिष्ठ टेलीविजन एंकर :
किसी भी लोकतंत्र की प्रतिनिधि संस्था में विपक्ष और उसके नेता की भूमिका भी साफ साफ होनी चाहिए। मौजूदा लोकसभा के संदर्भ में नेता विपक्ष को लेकर जो विवाद हो रहा है और उस पर जो लेख लिखे जा रहे हैं उन सभी को पढ़ते हुए यही लग रहा है कि नेता विपक्ष को लेकर स्पष्ट व्याख्या नहीं है।
संघ सिस्टम बनाम नो सिस्टम
रवीश कुमार, वरिष्ठ टेलीविजन एंकर :
आखिर कौन नहीं चाहता था कि कांग्रेस हारे। सीएजी रिपोर्ट और लोकपाल आंदोलन के वक्त दो साल तक कांग्रेस ने जिस अहंकार का प्रदर्शन किया क्या उसकी सजा मिलने पर जश्न नहीं होना चाहिए।
माँ-बेटा कांग्रेस पर कृपा करें
डॉ वेद प्रताप वैदिक, राजनीतिक विश्लेषक :
कांग्रेस ने इस चुनाव में जैसी मार खाई, क्या पहले कभी खाई? लेकिन कोई भी मुँह क्यों नहीं खोल रहा है? क्योंकि इस पार्टी के बड़े-बड़े नेपोलियन बोनापार्ट पिछले 40-45 साल में बौने हो गये हैं।
चुनावी नतीजों पर याद आती कुछ पुरानी बातें
राजीव रंजन झा :
लोक सभा चुनाव में भाजपा को अकेले अपने दम पर बहुमत पाने के बाद मुझे बीते साल दो तीन साल में लिखी अपनी बहुत-सी पुरानी बातें याद आ रही हैं। क्या भूलूँ क्या याद करूँ? ...क्या-क्या गिनाऊँ?
चुनाव के बाद सोशल मीडिया पर हास परिहास का दौर
लोक सभा चुनाव के बाद सोशल मीडिया पर हास परिहास भी चरम पर है। एक से बढ़ कर एक मजाकिया टिप्पणियाँ फैल रही हैं। इनमें से किस टिप्पणी या चुटकुले को सबसे पहले किसने लिखा, यह खोज पाना तो संभव नहीं लगता।
अब राहुल बचाओ!
डॉ वेद प्रताप वैदिक, राजनीतिक विश्लेषक :
कांग्रेस खुद को तो बचा न सकी। अब वह राहुल को बचाने में लगी हुई है। सोनिया गांधी के दरबारी सलाहकार, जिन्हें हम ‘बड़े नेता’ कहें तो उन्हें अच्छा लगता है, वे इकट्ठे होकर सोच रहे हैं कि अब क्या करें?
मतदान के अंदाजी घोड़े
डॉ वेद प्रताप वैदिक, राजनीतिक विश्लेषक :
मतदान के अंदाजी घोड़े अभी से दौड़ने शुरू हो गये हैँ। नरेंद्र मोदी को अपना दुश्मन मानने वाले टीवी चैनल भी यह कहने को मजबूर हो गये हैं कि भाजपा को कम से कम 250 सीटें तो मिलेंगी ही।
मोदी विरोध का विकल्प मोदी
रवीश कुमार, वरिष्ठ टेलीविजन एंकर :
सोलह मई को मतगणना होने वाली है। अभी से सरकार को लेकर क़यास लगा रहे होंगे। यह एक सामान्य और स्वाभाविक लोकतांत्रिक उत्सुकता है।