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चीफ जस्टिस साहब, चंद्र बाबू की आँखें ढूँढ़ रही हैं आपको!
अभिरंजन कुमार, पत्रकार :
बताइए तो एक शरीफ आदमी को इतने-इतने साल जेल में रखना कहाँ तक मुनासिब है? जिन लोगों ने भी शहाबुद्दीन साहब की जमानत और रिहाई का रास्ता प्रशस्त किया, वे तमाम लोग संयुक्त रूप से अगले भारत रत्न के हकदार हैं। इनमें मैं जमानत देने वाले उन जज साहब की भी पैरवी कर रहा हूँ, न्याय का माथा ऊँचा करने में जिनके उल्लेखनीय योगदान की कोई चर्चा ही नहीं कर रहा।
यह कैसा ‘बचकाना न्याय’ है?
कमर वहीद नकवी, वरिष्ठ पत्रकार :
लोग अब खुश हैं। अपराध और अपराधियों के खिलाफ देश की सामूहिक चेतना जीत गयी। किशोर न्याय (Juvenile Justice) पर एक अटका हुआ बिल पास हो चुका है। अब कोई किशोर अपराधी उम्र के बहाने कानून के फंदे से नहीं बच पायेगा। किसी अटके हुए बिल ने आज तक देश की 'सामूहिक चेतना' को ऐसा नहीं झकझोरा, जैसा इस बिल ने किया। जाने कितने बिल संसद में बरसों बरस लटके रहे, लटके हुए हैं। लोकपाल तो पचास साल तक कई लोकसभाओं में कई रूपों में आता-जाता, अटकता-लटकता रहा। देश की सामूहिक चेतना नहीं जगी। महिला आरक्षण बिल भी बरसों से अटका हुआ है। उस पर भी देश की 'सामूहिक चेतना' अब तक नहीं जग सकी है! और शायद कभी जगे भी नहीं!
अलविदा
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मन था मुंबई ब्लास्ट पर लिखूँ। मन था कि याकूब को मिली फाँसी पर लिखूँ। कल देर रात दफ्तर में बैठा रहा, रात भर याकूब मेमन को बचाने की कोशिशों की खबरों का अपडेट करता रहा। सोचता रहा कि क्या लिखूँ।
बेटियों के गुनाहगार
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
राज कपूर की फिल्म ‘प्रेम रोग’ जब मैं देख रहा था, तब मैं स्कूल में रहा होऊंगा।