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शहाबुद्दीनवादी सरकार क्या समझेगी शहादत का मोल…

अभिरंजन कुमार, पत्रकार :
बिहार के अमर शहीद अशोक सिंह की पत्नी और हमारी बहन संगीता ने शहीदों को दिए जाने वाले मुआवजों को लेकर जो सवाल उठाए हैं, उसने हमारी कई सरकारों और राजनीतिक दलों की बेशर्मी और फूहड़पने की पोल खोल कर रख दी है।
कोल्ड ड्रिंक को क्रेडिट

आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
सिंधु सोने जैसी चाँदी को ले आयी हैं। चाँदी के भावों में तेजी का रुख है, इन दिनों, सोने की रफ्तार ढीली पड़ी हुई है। सिंधु-साक्षी की सफलताओं से बेटों का मार्केट रेट गिर गया है, नवजोत सिंह सिद्धू के भावों की तरह। पर, पर, पर बेटियों की सफलताओं को बेटों को कूटनेवाले प्लीज समझें -किसी बेटे गोपीचंद ने कोचिंग दी है सिंधु को। समन्वय से रिजल्ट आते हैं, अतिरेकी तर्कों से सिर्फ मारधाड़ बढ़ती है।
प्यार, स्नेह और मान दें रिश्तों में प्रेम के अंकुर फूटेंगे

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मैं एक बहू से मिला हूँ। मैं एक सास से मिला हूँ।
दोनों में नहीं बनती। क्यों नहीं बनती मुझे नहीं पता। बहू का कहना है कि सास हर पल उसे नीचा दिखाती हैं।
सास कहती हैं कि बहू उसे पूछती नहीं।
चेत जाइये नहीं तो कुछ भी नहीं होगा

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
आज चौथा दिन है जब बुखार ने मेरा पीछा नहीं छोड़ा है। बुखार क्यों हुआ, नहीं पता। मैंने खाने-पीने में ऐसी कोई बदपरहेजी नहीं की। पर बुखार हो गया। एक दिन का बुखार होता है तो पत्नी की सेवा से ठीक हो जाता हूँ। दो दिन का बुखार होता है तो बिस्तर पर लेटे-लेटे ऊटपटांग सपने देखने लगता हूँ। तीसरे दिन तो डॉक्टर को दिखला ही लेना चाहिए। क्रोसिन और कालपोल से तीसरे दिन काम नहीं चलाना चाहिए। तो कल मैं डॉक्टर को दिखला आया।
हम अंदर की कमजोरियाँ हारते हैं

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
मेरी एक परिचित ने मुझे बताया कि उनकी बेटी, जिसकी शादी उन्होंने कुछ ही दिन पहले एक अमीर घर में की थी, वो किसी और से प्यार करने लगी है। जाहिर है शादी के बाद बेटी का किसी और से प्यार करना मेरी परिचित को नागवार गुजर रहा है। उन्होंने अपनी तकलीफ मुझसे साझा की। उनकी तकलीफ अब मेरी तकलीफ बन गयी है। मैं सारी रात सोचता रहा कि मैं इस विषय पर लिखूँ या नहीं।
रिश्ते मन के भाव से सुधरते हैं

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
कल रात मुझे एक लड़की ने फोन किया और रोने लगी। मैं बहुत देर तक समझ नहीं पाया कि आखिर माजरा क्या है। मैं चुपचाप उस तरफ से रोने की आवाज सुनता रहा, फिर जब वो जरा शांत हुई, तो मैंने पूछा कि आप कौन हैं और क्यों रो रही हैं?
‘फेरिहा’

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
'फेरिहा' एक चौकीदार की बेटी का नाम है। टर्की में रहने वाली फेरिहा मेहनत और लगन से अच्छे कॉलेज में दाखिला पा लेती है और खूब पढ़ना चाहती है। लेकिन उसके पिता को उसकी शादी की चिंता है। उन्होंने अपनी बिरादरी और हैसियत जैसे एक परिवार के लड़के को फेरिहा के लिए पसंद कर रखा है। पिता की निगाह में वही लड़का फेरिहा के लिए उपयुक्त है। वो जानते हैं कि वो लड़का भी फेरिहा को पसंद करता है, उसकी सुंदरता पर मरता है।
तेंतर

प्रेमचंद :
आखिर वही हुआ जिसकी आशंका थी; जिसकी चिंता में घर के सभी लोग विशेषतः प्रसूता पड़ी हुई थी। तीन पुत्रों के पश्चात् कन्या का जन्म हुआ। माता सौर में सूख गयी, पिता बाहर आँगन में सूख गये, और पिता की वृद्धा माता सौर द्वार पर सूख गयीं। अनर्थ, महाअनर्थ ! भगवान् ही कुशल करें तो हो ? यह पुत्री नहीं राक्षसी है। इस अभागिनी को इसी घर में आना था ! आना ही था तो कुछ दिन पहले क्यों न आयी। भगवान् सातवें शत्रु के घर भी तेंतर का जन्म न दें।
बहन की पाती भाइयों के नाम : अगले साल जरूर आना

पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :
हम चार भाइयों के परिवार में कुल छह बेटे और छह बेटियों में सबसे छोटी है श्वेता। बीस बरस की श्वेता राखी के दिन उदास थी। अकेले कमरें में आँसुओं के बीच उसने अपना दर्द कविता में उड़ेल दिया। छह मे तीन भाई विदेश में तो बचे तीन दूसरे शहरों में। चिकन पाक्स हो जाने से बंगलोर में निफ्ट से फैशन डिजाइनिंग कर रही श्वेता हास्टल से बाहर नहीं निकली। डर था कि घर जाने से माँ इन्दिरा, भाभी रिंकू, भतीजी मिहिका और भतीजा प्रांशु भी कहीं चेचक की चपेट में न आ जाएँ।
अफसोस

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
मैंने कल लिखा था कि दिल्ली के मैक्स अस्पताल में एक बेटी अपने पिता के ऑपरेशन के बाद उनकी तस्वीर अपने भाई को भेजना चाहती थी, जो अमेरिका में रहता है। उसका सोचना था कि भाई वहाँ परेशान होगा और पिता की तस्वीर देख कर बहुत खुश होगा। पर डॉक्टर ने उसे पिता से बात कराने की ही अनुमति दे दी।