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कांग्रेस 2019 की तैयारी करेगी उत्तर प्रदेश के चुनाव में : विनोद शर्मा

उत्तर प्रदेश विधान सभा के चुनावी समर के लिए कांग्रेस ने अपने सेनापतियों को सामने ला खड़ा किया है। इन नामों को चुनने के पीछे कांग्रेस की रणनीति क्या है, यह जानने के लिए देश मंथन ने बात की कांग्रेस की राजनीति पर पैनी निगाह रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार और हिंदुस्तान टाइम्स के राजनीतिक संपादक विनोद शर्मा से।
क्या संभव हैं एक साथ लोस-विस चुनाव ?

संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
देश में इस वक्त यह बहस तेज है कि लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाएं। देखने और सुनने में यह विचार बहुत सराहनीय है और ऐसा संभव हो पाए तो सोने में सुहागा ही होगा।
वादों से बिजली

आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
अगर वादों, नारों से बिजली बनाना संभव होता, तो बिहार पूरे देश को बिजली सप्लाई करने जितनी बिजली बना पाने में समर्थ हो जाता। बिहार में वादे ही वादे सब तरफ से गिर रहे हैं। चुनाव आम तौर पर वादा महोत्सव होते हैं, पर बिहार विधानसभा चुनाव तो सुपर-विराट-महा-वादा महोत्सव हो लिये हैं।
बिहार में ‘हवा’ उसकी नहीं, जिसकी जीत होने वाली है!

अभिरंजन कुमार :
बिहार चुनाव एक पहेली की तरह बन गया है। अगड़े, पिछड़े, दलित, महादलित-कई जातियों/समूहों के लोगों से मेरी बात हुई। उनमें से ज्यादातर ने कहा कि उन्होंने बदलाव के लिए वोट दिया, लेकिन साथ ही वे इस आशंका से मायूस भी थे कि बदलाव की संभावना काफी कम है।
ज्ञान ही ज्ञान

सुशांत झा, पत्रकार :
उन लोगों पर ताज्जुब होता है जो कहते हैं कि पीएम को बिहार में 40 सभाएँ नहीं करनी चाहिए। अरे भाई, इसका क्या मतलब कि जिस बच्चे को 12वीं में 99 फीसदी नंबर आये वो IIT की परीक्षा में दारू पीकर इक्जाम देने चला जाये? हद है! चुनाव है या फेसबुक पोस्ट कि कुछ भी लिख दिया? विपक्षी दलों के पास नेता नहीं है और जो हैं या तो वो जोकर किस्म के हैं या किसी आईलैंड पर तफरीह कर रहे हैं तो इसमें नरेंद्र मोदी का क्या दोष है? ये तो उस आदमी का बड़प्पन है कि सांढ का सींग पकड़कर मैदान में डटा हुआ है।
वायदों की बौछार, पर धन का पता नहीं

राजेश रपरिया :
आज मतदान के प्रथम चरण के साथ बिहार का भाग्य इलेक्ट्रॉनिक मतपेटिकाओं में बंद होना शुरू हो चुका है। नतीजे एनडीए के पक्ष में आयें या नीतीश-लालू-कांग्रेस गठबंधन के पक्ष में, पर इस बार बिहार चुनाव निष्कृष्टता और मर्यादाहीनता की सभी सीमाएँ लांघ चुका है। सिद्धांतहीनता अपने चरम पर है। चुनावों में इतना वैमनस्य कभी देखने में नहीं आया, जो इस बार बिहार में देखने को मिल रहा है। मतदान नजदीक आने के साथ सारे मुद्दे गुल हो गये हैं और शुद्ध रूप से जातियों के गणित पर यह चुनाव आ कर टिक गया है।
बिहार चुनावः अग्निपरीक्षा किसकी?

संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
बिहार का चुनाव वैसे तो एक प्रदेश का चुनाव है, किन्तु इसके परिणाम पूरे देश को प्रभावित करेंगे और विपक्षी एकता के महाप्रयोग को स्थापित या विस्थापित भी कर देगें। बिहार चुनाव की तिथियाँ आने के पहले ही जैसे हालात बिहार में बने हैं, उससे वह चर्चा के केंद्र में आ चुका है। प्रधान मन्त्री नरेन्द्र मोदी वहाँ तीन रैलियाँ कर चुके हैं।
मांझी से मजबूत होगा एनडीए

अभिरंजन कुमार :
जीतनराम मांझी के शामिल होने का फायदा एनडीए को निश्चित रूप से होगा और नीतीश कुमार को नेता घोषित करने का नुकसान निश्चित रूप से कांग्रेस-आरजेडी-जेडीयू-एनसीपी-कम्युनिस्ट गठबंधन को होगा।
दिल्ली में दलित वोटर होंगे निर्णायक

संदीप त्रिपाठी : दिल्ली विधानसभा चुनाव में इस बार दलित वोट निर्णायक भूमिका में होंगे। पूरी दिल्ली में एक वर्ग के रूप में सबसे ज्यादा संख्या दलितों की ही है। दिल्ली के कुल 1,30,85,251 मतदाताओं में 17 फीसदी दलित हैं। कुल 70 विधानसभा क्षेत्रों में से 12 तो सुरक्षित हैं ही, आठ अन्य क्षेत्रों में भी दलित प्रभावी संख्या में हैं।
वर्ष 2015 और देश की लकीरें!

क़मर वाहिद नक़वी, वरिष्ठ पत्रकार :
तो आपका समय शुरू होता है अब! और ‘हॉट सीट’ पर हैं, नरेन्द्र मोदी, राहुल गाँधी, नीतीश कुमार और अरविन्द केजरीवाल! 2015 कोई मामूली साल नहीं है, जो हर साल की तरह बस आयेगा और चला जायेगा! यह लकीरों के बनने-बनाने और मिटने-मिटाने का साल है! इस साल को तय करना है कि देश किन लकीरों पर चलेगा?