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सोच में बदलाव
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
कल मैंने लिखा था कि मुझसे मेरे एक परिचित ने पूछा था कि फेसबुक पर रोज लिख कर मैं अपना समय क्यों जाया करता हूँ, तो मैंने बता दिया था कि यही वो मेला है, जहाँ मुझे अपने सारे खोया हुए रिश्ते मिले हैं।
पराये मर्द का लाइक
आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार
शिष्टाचार अलग है और फेसबुक का शिष्टाचार अलग है।
प्यार
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
स्कूल में मास्टर साहब पढ़ा रहे थे। अचानक मास्टर ने क्लास में सभी बच्चों से पूछा, “बच्चों तुम्हें अचानक भगवान मिल जाएँ और तुमसे कहें कि तुम क्या माँगते हो, विद्या या धन, तो तुम क्या माँगोगे?”
अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता
आनंद कुमार, डेटा एनालिस्ट :
भारतीय लोगों की अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता एक लाइन में तय हो जाती है | संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) में कुल दस शब्द भी नहीं हैं, लेकिन ये एक मौलिक अधिकार है। अगर कहीं ये सोच रहे हैं की मौलिक अधिकार है तो आप इसका हमेशा इस्तेमाल कर सकते हैं, तो आप गलत समझ रहे हैं।
एक साथ ब्रह्मचर्य और सन्नी लियोन लवर्स ग्रुप
आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
मैं फेसबुक पर उस दिन हैरान रह गया जब मैंने खुद को फेसबुक पर एक साथ ब्रह्मचर्य उत्थान समूह का और गरम कहानियाँ समूह का हिस्सा पाया।
जीओ और जीने दो
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मुझे तो सुबह उठ कर अपनी पत्नी को धन्यवाद कहना ही चाहिए।
उसने मुझे कभी देर रात हाथ में कम्प्यूटर की स्क्रीन में झाँकने से नहीं रोका।
ऊधमी छोकरा, षोडशी सुंदरी और गैंडा
आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
लंबे समय से व्यंग्य लिखते हुए एक अनुभव आया कि फेसबुक, ट्विटर पर छपे व्यंग्य पर हासिल प्रतिक्रियाएँ त्वरित और कई बार असंतुलित होती हैं।
रिश्तों का गुलदस्ता
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मैं कल्पना के संसार में जीता हूँ। मैं कल्पना के संसार में ही जीना चाहता हूँ। मैं हर रोज एक काल्पनिक कहानी लिखता हूँ।
फिल्म पीके पर छिड़ा संग्राम, निशाने पर रहे आमिर
देश मंथन डेस्क :
आमिर खान अभिनीत फिल्म पीके की विषय-वस्तु और कथानक को लेकर सोशल मीडिया साइट ट्विटर में युद्ध छिड़ गया है। हालाँकि ट्विटर पर फिल्म पीके के समर्थक और विरोधी दोनों गुट सक्रिय हैं, जो फिल्म के समर्थन और विरोध में लगातार ट्वीट कर रहे हैं।
फेसबुक लिखाड़ों के सामने मँडराया खतरा!
शिव ओम गुप्ता :
फेसबुक ने आम जन को भी एक लेखक बना दिया, जहाँ बगैर किसी अवरोध के हम अपनी मनपसंद भाषा और शैली में कुछ भी लिखने को आजाद थे और यह खतरा भी नहीं था कि कोई क्या कर लेगा? ज्यादा-से-ज्यादा लाइक नहीं करेगा। तो ना करे, उसका क्या?