Friday, November 22, 2024
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गलती को पुचकार कर सुधारें

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

कल रात सोते हुए मैं फूला नहीं समा रहा था कि मैंने कड़वी चाय को दुरुस्त करने की कला के साथ-साथ रिश्तों में प्यार के फूल खिलाने की विद्या भी आपको सिखलायी। मैंने कल जो पोस्ट लिखी थी, उसमें जिन्दगी का निचोड़ डाल दिया था। 

रिश्तों को जीने वाले आँखों से जीते हैं

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

मेरे एक फेसबुक परिजन ने मुझसे शिकायत की कि संजय सिन्हा आप बहुत झूठ बोलते हैं।

रिश्तों का पाठ

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक : 

मेरी माँ की तबियत जब बहुत खराब हो गयी थी तब पिताजी ने मुझे पास बिठा कर बता दिया था कि तुम्हारी माँ बीमार है, बहुत बीमार। मैं आठ-दस साल का था। जितना समझ सकता था, मैंने समझ लिया था। पिताजी मुझे अपने साथ अस्पताल भी ले जाते थे। उन्होंने बीमारी के दौरान मेरी माँ की बहुत सेवा की, पर उन्होंने मुझे भी बहुत उकसाया कि मैं भी माँ की सेवा करूं। 

रिश्तों को समय दीजिए

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

मेरे दफ्तर के एक साथी को कुछ महीने पहले पिता बनने का सौभाग्य मिला है।

आत्मा से रिश्ता

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

एक पिता ने मुझसे गुहार लगायी है कि मैं उनके बेटे को समझाऊँ। बेटा पिता की बात नहीं सुनता। वो पिता के साथ अभद्र व्यवहार करता है। मैंने सोच लिया था कि मैं चौथी कक्षा में पढ़ी वो कहानी उसे जरूर सुनाऊँगा, जिसे पढ़ते हुए मैं बहुत गहरी सोच में डूब जाया करता था।

नयनतारा से मुनव्वर एक डूबते हुए वंश को बचाने के लिए हुए क्रांतिकारी

अभिरंजन कुमार, पत्रकार :

अब आप इसे सेक्युलरिज्म की लड़ाई कहें, अभिव्यक्ति की आजादी पर हमले के खिलाफ सघर्ष कहें या बढ़ती असहिष्णुता का विरोध... नयनतारा सहगल से लेकर मुनव्वर राणा तक आते-आते यह साफ हो चुका है कि बिहार चुनाव के ठीक बीच लेखकों का “पुरस्कार लौटाओ अभियान” पूर्णतः सियासी है। जिन डिजर्विंग और नॉन-डिजर्विंग लेखकों पर अतीत में अहसान किये गये, आज एक डूबते हुए वंश को बचाने और देश में राजनीतिक अस्थिरता पैदा करने के लिए उनका इस्तेमाल किया जा रहा है।

समंदर की सैर

‪‎संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

बहुत से लोग कभी बड़े नहीं होते। मैं भी उनमें से एक हूँ। 

बहन की पाती भाइयों के नाम : अगले साल जरूर आना

पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :

हम चार भाइयों के परिवार में कुल छह बेटे और छह बेटियों में सबसे छोटी है श्वेता। बीस बरस की श्वेता राखी के दिन उदास थी। अकेले कमरें में आँसुओं के बीच उसने अपना दर्द कविता में उड़ेल दिया। छह मे तीन भाई विदेश में तो बचे तीन दूसरे शहरों में। चिकन पाक्स हो जाने से बंगलोर में निफ्ट से फैशन डिजाइनिंग कर रही श्वेता हास्टल से बाहर नहीं निकली। डर था कि घर जाने से माँ इन्दिरा, भाभी रिंकू, भतीजी मिहिका और भतीजा प्रांशु भी कहीं चेचक की चपेट में न आ जाएँ। 

परिवार और रिश्ते

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

मेरी साली के बेटे से स्कूल टीचर ने उसके परिवार की तस्वीर बनाने के लिए कहा।

रास्ते हैं प्यार के, चलिये संभल के

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

मुझे यकीन है कि आप में से कोई न कोई कीनिया की मिस कुवी को जरूर जानता होगा। मिस कुवी पिछले साल भर से दोस्ती निवेदन मेरे पास भेज रही हैं।

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