Sunday, June 8, 2025
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महज 8% किसान बचे हैं देश में : साईनाथ

संदीप त्रिपाठी :

प्रख्यात कृषि पत्रकार पी. साईनाथ को सुनना अपने-आप में अद्भुत है। अद्भुत इसलिए है कि आज के दौर में जब हर आदमी, भले ही वह पत्रकार ही क्यों न हो, खेमों में बँटा दिखता है।

किसानों का शहर

निभा सिन्हा :

आषाढ़ महीना का पूरा एक पक्ष निकल गया, मतलब कुल पंद्रह दिन, लेकिन बारिश की बूँदें गिन कर ही बरसी हैं इस बार भी। खबर मिली है गाँव से कि धान के बीज जल गये कई लोगों के इस बार भी। मुझे पता नहीं क्यूँ, नगीना बाबा बहुत याद आ रहे हैं।

भूमि अधिग्रहण बिल पर तथ्यहीन विरोध

राजीव रंजन झा :

राहुल गाँधी को भारतीय राजनीति में पुनर्स्थापित करने के प्रयास के तहत कांग्रेस ने बीते रविवार को दिल्ली में किसानों की रैली की और उसमें राहुल खूब गरजे-बरसे।

‘डांस आँफ डेमोक्रेसी’ में एक गजेन्द्र!

कमर वहीद नकवी , वरिष्ठ पत्रकार 

यह ‘डांस आँफ डेमोक्रेसी’ है! लोकतंत्र का नाच! राजस्थान के किसान गजेन्द्र सिंह कल्याणवत की मौत के बाद जो हुआ, जो हो रहा है, उसे और क्या कहेंगे? यह राजनीति का नंगा नाच है।

गेहूँ की फसल कम होगी, लेकिन वोटों की खेती लहलहायेगी

संजय सिन्हा, आज तक :

मेरी माँ किसान नहीं थी, लेकिन जिस साल अप्रैल के महीने में आसमान में काले-काले बादल छाते और ओले बरसते माँ सिहर उठती थी।

जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा, उनका भी अपराध

अजीत अंजुम, प्रबंध संपादक, इंडिया टीवी :

आशुतोष, मैं आपको बेहद संवेदनशील इंसान मानता था, लेकिन दिल्ली में एक किसान की खुदकुशी के बाद आपने जिस ढंग से रिएक्ट किया, उसके बाद से आपकी संवेदनशीलता संदिग्ध हो गयी है।

देश का ऊंघता नेतृत्व

अजय अनुराग :

विदेश से दो महीने की गुमनामी छुटियाँ (चिंतन अवकाश) बिताकर स्वदेश लौटे राहुल गांधी द्वारा कल संसद में दिया गया भाषण बेहद हैरान व परेशान करने वाला है।

खेती करके वह पाप कर रहे हैं क्या?

कमर वहीद नकवी , वरिष्ठ पत्रकार 

किसान मर रहे हैं। खबरें छप रही हैं। आज यहाँ से, कल वहाँ से, परसों कहीं और से। खबरें लगातार आ रही हैं। आती जा रही हैं। किसान आत्महत्याएँ कर रहे हैं। इसमें क्या नयी बात है? किसान तो बीस साल से आत्महत्याएँ कर रहे हैं।

जमीन छीन लीजिए पर संवाद तो कीजिए

संजय द्विवेदी :                          

भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने आते ही जिस तरह भूमि अधिग्रहण को लेकर एक अध्यादेश प्रस्तुत कर स्वयं को विवादों में डाल दिया है, वह बात चौंकाने वाली है। यहाँ तक कि भाजपा और संघ परिवार के तमाम संगठन भी इस बात को समझ पाने में असफल हैं कि जिस कानून को लम्बी चर्चा और विवादों के बाद सबकी सहमति से 2013 में पास किया गया, उस पर बिना किसी संवाद के एक नया अध्यादेश और फिर कानून लाने की जरूरत क्या थी?

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