Friday, November 22, 2024
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जिनके पास भावनाएँ हैं, वही जिन्दगी के मर्म को समझता हैं

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

मेरा एक दोस्त बहुत व्यस्त रहता है। सारा दिन काम में डूबा रहता है। उसके फोन की घंटियाँ थमने का नाम नहीं लेतीं। सारा दिन फोन कान पर ऐसे चिपका रहता है मानो फोन का अविष्कार नहीं हुआ होता तो वो जिन्दगी में कुछ कर ही नहीं पाता।

शांति

प्रेमचंद :   

स्वर्गीय देवनाथ मेरे अभिन्न मित्रों में थे। आज भी जब उनकी याद आती है, तो वह रंगरेलियाँ आँखों में फिर जाती हैं, और कहीं एकांत में जाकर जरा देर रो लेता हूँ।

अपने कर्मों का भोजन हम स्वयँ बनाते हैं

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

चार दोस्त थे। 

अब अगर चार की जगह तीन दोस्त भी होते तो वही होता, जो चार के होने पर हुआ। 

खैर, संख्या की कोई अहमियत नहीं। न ही ये बहस का विषय हो सकता है।

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