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धर्म-निरपेक्ष कि पंथ-निरपेक्ष?
कमर वहीद नकवी, वरिष्ठ पत्रकार :
पिछले हफ्ते बड़ी बहस हुई। सेकुलर मायने क्या? धर्म-निरपेक्ष या पंथ-निरपेक्ष? धर्म क्या है? पंथ क्या है? अँगरेजी में जो 'रिलीजन' है, वह हिन्दी में क्या है—धर्म कि पंथ? हिन्दू धर्म है या हिन्दू पंथ? इस्लाम धर्म है या इस्लाम पंथ? ईसाई धर्म है या ईसाई पंथ? बहस नयी नहीं है। गाहे-बगाहे इस कोने से, उस कोने से उठती रही है। लेकिन वह कभी कोनों से आगे बढ़ नहीं पायी!
कामन सिविल कोड से क्यों डरें?
कमर वहीद नकवी , वरिष्ठ पत्रकार
हिन्दुओं ने तो ज्यादातर सामाजिक सुधारों को स्वीकारना शुरू कर दिया, लेकिन मुसलमानों ने पर्सनल लॉ को 'धर्म की रक्षा' का सवाल बना कर अपनी अलग पहचान और अस्तित्व का मुद्दा बना लिया और वह उसमें किसी भी बदलाव का विरोध करते रहे। 1985 का शाहबानो मामला इसकी चरम परिणति थी, जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने अगर कट्टरपंथी मुसलमानों के सामने घुटने न टेके होते तो आज शायद देश में आम मुसलमानों की स्थिति पहले से कहीं बेहतर होती!
आभासी सांप्रदायिकता के खतरे
संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
जिस तरह का माहौल अचानक बना है, वह बताता है कि भारत अचानक अल्पसंख्यकों (खासकर मुसलमान) के लिए एक खतरनाक देश बन गया है और इसके चलते उनका यहाँ रहना मुश्किल है। उप्र सरकार के एक मंत्री यूएनओ जाने की बात कर रहे हैं तो कई साहित्यकार अपने साहित्य अकादमी सम्मान लौटाने पर आमादा हैं। जाहिर तौर पर यह एक ऐसा समय है, जिसमें आयी ऐसी प्रतिक्रियाएँ हैरत में डालती हैं।
बलि के बकरों के लिए किसका काँपता है कलेजा?
अभिरंजन कुमार :
अखलाक को किसी हिन्दू ने नहीं मारा। हिन्दू इतने पागल नहीं होते हैं। उसे भारत की राजनीति ने मारा है, जिसके लिए वह बलि का एक बकरा मात्र था। सियासत कभी किसी हिन्दू को, तो कभी किसी मुस्लिम को बलि का बकरा बनाती रहती है। इसलिए जिन भी लोगों ने इस घटना को हिन्दू-मुस्लिम रंग देने की कोशिश की है, वे या तो शातिर हैं या मूर्ख हैं।
मैं हिन्दू हूँ
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
मेरी कल की पोस्ट पर एक परिजन ने अपने कमेंट में मुझसे पूछा है, “भारत में कौन सी हिन्दू माँ अपने बेटे को ईसा मसीह की कहानी सुनाती है? ज्यादातर माँएँ तो यह भी नहीं जानती कि ईसा कौन आदमी था? आपने झूठी पोस्ट लिखी है। और माँ द्वारा कहानी तो गांधीजी की भी नहीं सुनाई जाती। भैया कौन से ग्रह से आए हो?”
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देश को क्यों बाँट रहा है मीडिया
संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
काफी समय हुआ पटना में एक आयोजन में माओवाद पर बोलने का प्रसंग था। मैंने अपना वक्तव्य पूरा किया तो प्रश्नों का समय आया। राज्य के बहुत वरिष्ठ नेता, उस समय विधान परिषद के सभापति रहे स्व.श्री ताराकान्त झा भी उस सभा में थे, उन्होंने मुझे जैसे बहुत कम आयु और अनुभव में छोटे व्यक्ति से पूछा “आखिर देश का कौन सा प्रश्न या मुद्दा है जिस पर सभी देशवासी और राजनीतिक दल एक है?” जाहिर तौर पर मेरे पास इस बात का उत्तर नहीं था। आज जब झा साहब इस दुनिया में नहीं हैं, तो याकूब मेमन की फाँसी पर देश को बँटा हुआ देखकर मुझे उनकी बेतरह याद आयी।
बू अली शाह कलन्दर – दमादम मस्त कलन्दर
विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
पानीपत का कलन्दर शाह की दरगाह हिन्दुओं और मुसलमानों के लिए समान रूप से श्रद्धा का केन्द्र है।
धर्मांतरणः हंगामा क्यों है बरपा?
संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
धर्मांतरण के मुद्दे पर मचे बवाल ने यह साफ कर दिया है कि इस मामले पर शोर करने वालों की नीयत अच्छी नहीं है। किसी का धर्म बदलने का सवाल कैसे एक सार्वजनिक चर्चा का विषय बनाया जाता है और कैसे इसे मुद्दा बनाने वाले धर्मांतरण के खिलाफ कानून बनाने के विषय पर तैयार नहीं होते, इसे देखना रोचक है।
पाकिस्तान : हिंदू लड़की से शादी करना होगा मुश्किल
संजय तिवारी, संपादक, विस्फोट :
पाकिस्तान की नवाज शरीफ सरकार एक पाकिस्तान के हिंदुओं की सुरक्षा की दिशा में एक ऐसी पहल करने जा रही है जिसके बाद कम से कम हिंदू लड़कियों को सामाजिक सुरक्षा मिले न मिले लेकिन कुछ हद तक कानूनी सुरक्षा जरूर मिल सकेगी।