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जन्नत की हूरों के बारे में जाकिर नाइक को खुला पत्र
अभिरंजन कुमार, पत्रकार :
परम आदरणीय जनाब-ए-आला स्कॉलर श्री ज़ाकिर नाइक साहब,
इस्लाम और दुनिया के तमाम धर्मों के बारे में आपके ज्ञान को देखकर चकित हूं। लेकिन एक हज़ार मुद्दों पर जानकारी लेने में मेरी दिलचस्पी कम है। मैं तो बस जन्नत की हूरों के बारे में अधिक से अधिक जानना चाहता हूं। आशा है, जैसे आप भारत से भाग गए हैं, वैसे मेरे इन पैंतीस सवालों से नही भागेंगे।
क्या अल्लाह अपनी संतानों के खून से खुश होगा?
अभिरंजन कुमार, पत्रकार :
ईद के दिन हुए हमले के बाद बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने एक बार फिर कहा है कि "जो लोग ईद के दौरान भी हमले कर रहे हैं, वे इस्लाम और मानवता के दुश्मन हैं।" ईद और रमजान का हवाला देते हुए जब वे आतंकी हमलों की निंदा करती हैं, तो उनका यह मतलब कतई नहीं होता कि बाकी दिनों में हमले जायज हैं, जैसा कि सोशल मीडिया पर मजाक चल रहा है।
दिल की रानी
प्रेमचंद :
जिन वीर तुर्कों के प्रखर प्रताप से ईसाई-दुनिया काँप रही थी, उन्हीं का रक्त आज कुस्तुन्तुनिया की गलियों में बह रहा है। वही कुस्तुन्तुनिया जो सौ साल पहले तुर्कों के आतंक से आहत हो रहा था, आज उनके गर्म रक्त से अपना कलेजा ठंडा कर रहा है। और तुर्की सेनापति एक लाख सिपाहियों के साथ तैमूरी तेज के सामने अपनी किस्मत का फैसला सुनने के लिये खड़ा है।
इतिहास बोल रहा है, आप सुनेंगे क्या?
कमर वहीद नकवी, वरिष्ठ पत्रकार:
कहीं का इतिहास कहीं और का भविष्य बाँचे! बात बिलकुल बेतुकी लगती है न! इतिहास कहीं और घटित हुआ हो या हो रहा हो और भविष्य कहीं और का दिख रहा हो! लेकिन बात बेतुकी है नहीं! समय कभी-कभार ऐसे दुर्लभ संयोग भी प्रस्तुत करता है!
पेशावर की परतों के भीतर
क़मर वहीद नक़वी :
पेशावर के गम, ग़ुस्से और मातम में सारी दुनिया शरीक हुयी, कुछ को छोड़ कर! तालिबान के इस क्रूरतम चेहरे पर सारी दुनिया ने लानत-मलामत की, लेकिन कुछ बिल्कुल भी नहीं बोले, ये कुछ कौन हैं? जो चुप रहे, जिन्होंने रस्मी मातमपुर्सी के लिए भी कुछ बोलने की जहमत गवारा नहीं की।