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बदल गया बिहार
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
एक श्राद्ध में शामिल होने के लिए मुझे दिल्ली से पटना आना पड़ा। पटना इन दिनों चुनावी रंग में रंगा है। अब चुनाव से मेरा क्या लेना देना? एयरपोर्ट से होटल तक पूरा शहर तरह-तरह के चुनावी पोस्टरों से पटा पड़ा है। कहीं लिखा है, “अबकी बार, नीतीश कुमार” तो कहीं लिखा है, “बदलेगा बिहार, बदलेगी सरकार।”
इमरजंसी – एक याद (2)
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
शायद पिताजी को इस बात का आभास हो चुका था कि दिल्ली में कुछ हो रहा है। वैसे तो पिताजी की आदत में शुमार था सुबह और शाम को रेडियो पर खबरें सुनना। सुबह आठ बजे रेडियो ऑन था।
मर्द
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
जून का महीना मेरी यादों का महीना होता है। आज जिन यादों से मैं गुजरने की सोच रहा हूँ, उस पर तो पूरी किताब भी लिख सकता हूँ। हालाँकि यादों की जिन कड़ियों से मैं गुजरने की अभी सोच रहा हूँ, वो बेशक एक दस्तावेज बन सकता है पर उसे ऐतिहासिक दर्जा कभी नहीं मिल सकता, क्योंकि चौथी-पाँचवीं कक्षा में पढ़ने वाला बच्चा क्या इतिहास लिख पायेगा, और कोई क्यों उसपर यकीन कर पायेगा।