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मन भरा तो मोक्ष मिला
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
पत्रकारिता में होने का कोई फायदा हो न हो, लेकिन एक फायदा जरूर है कि ऐसे कई लोगों से मिलने का मौका मिल जाता है, जिनसे आम तौर पर मुलाकात संभव नहीं।
बौद्धिक विमर्शों से नाता तोड़ चुके हैं हिन्दी के अखबार
संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्याल
हिन्दी पत्रकारिता को यह गौरव प्राप्त है कि वह न सिर्फ इस देश की आजादी की लड़ाई का मूल स्वर रही, बल्कि हिन्दी को एक भाषा के रूप में रचने, बनाने और अनुशासनों में बांधने का काम भी उसने किया है। हिन्दी भारतीय उपमहाद्वीप की एक ऐसी भाषा बनी, जिसकी पत्रकारिता और साहित्य के बीच अंतसंर्वाद बहुत गहरा था।
ऐसे शिक्षकों पर देशद्रोह का मुकदमा चलना चाहिए?
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
"अच्छा बताइए, राज्य सभा को अपर हाउस क्यों कहते हैं?"
"नहीं पता सर।"
"संसद के कितने अंग होते हैं, यह तो पता होगा ही।"
"नहीं सर, यह भी नहीं पता।"
"ओके, संसद में शून्य काल के बारे में तो सुना ही होगा।"
एक बड़ी चुप्पी...।
क्या आपको वाकई अपने पेशे से प्यार है?
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
मेरे एक रिश्तेदार की बेटी इन दिनों वकालत की पढ़ाई कर रही है। वह बहुत मेधावी है और मुझे पता है कि उसे हाई स्कूल की बोर्ड परीक्षा में 95% से अधिक मार्क्स मिले थे। जब वह मेरे पास करियर काउंसलिंग के लिए आयी थी, तो उसके मन में दुविधा थी कि उसे कानून की पढ़ाई करनी चाहिए या नहीं?