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कश्मीर में सरकार आपकी पर ‘राज’ किसका?
संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
कश्मीर में सुरक्षा बलों की दुर्दशा और अपमान के जो चित्र वायरल हो रहे हैं, उससे हर हिंदुस्तानी का मन व्यथित है। एक जमाने में कश्मीर को लेकर हुंकारे भरने वाले समूह भी खामोश हैं।
भारतीय नौजवानों में जहर घोलता आईएस
संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
समूची मानवता के लिए खतरा बन चुके खूंखार आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट के प्रति भारतीय युवाओं का आकर्षण निश्चित ही खतरनाक है। कश्मीर से लेकर केरल और अब गुजरात में दो संदिग्धों की गिरफ्तारी चिंतनीय है ही।
हमारा कश्मीर, तुम्हारा बलूचिस्तान
संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
देर से ही सही भारत की सरकार ने एक ऐसे कड़वे सच पर हाथ रख दिया है जिससे पाकिस्तान के सत्ता प्रतिष्ठान को मिर्ची लगनी ही थी। दूसरों के मामले में दखल देने और आतंकवाद को निर्यात करने की आदतन बीमारियाँ कैसे किसी देश को खुद की आग में जला डालती हैं, पाकिस्तान इसका उदाहरण है। बदले की आग में जलता पाकिस्तान कई लड़ाईयाँ हार कर भारत के खिलाफ एक छद्म युद्ध लड़ रहा है और कश्मीर के बहाने उसे जिलाए हुए है। पड़ोसी को छकाए-पकाए और आतंकित रखने की कोशिशों में उसने आतंकवाद को जिस तरह पाला-पोसा और राज्याश्रय दिया, आज वही लोग उसके लिए भस्मासुर बन गये हैं।
इस गर्जन-तर्जन से क्या हासिल?
संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
जब पूरा पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान कश्मीर में आग लगाने की कोशिशें में जुटा है तब हमारे गृहमंत्री राजनाथ सिंह पाकिस्तान क्यों गये, यह आज भी अबूझ पहेली है। वहाँ हुयी उपेक्षा, अपमान और भोजन छोड़ कर स्वदेश आ कर उनकी ‘सिंह गर्जना’ से क्या हासिल हुआ है? क्या उनके इस प्रवास और आक्रामक वक्तव्य से पाकिस्तान कुछ भी सीख सका है? क्या उसकी सेहत पर इससे कोई फर्क पड़ा है? क्या उनके पाकिस्तान में दिए गए व्याख्यान से पाकिस्तान अब आतंकवादियों की शहादत पर अपना विलाप बंद कर देगा? क्या पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान भारत के प्रति सद्भाव से भर जाएगा और कश्मीर में आतंकवादियों को भेजना कर देगा? जाहिर तौर पर इसमें कुछ भी होने वाला नहीं है।
कश्मीर में कुछ करिए : स्पष्ट संदेश दीजिए कि ‘नहीं मिलेगी आजादी’
संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
गनीमत है कि कश्मीर के हालात जिस वक्त बहुत बुरे दौर से गुजर रहे हैं, उस समय भारतीय जनता पार्टी विपक्ष में नहीं है। कल्पना कीजिए कि इस समय केंद्र और राज्य की सत्ता में कोई अन्य दल होता और भाजपा विपक्ष में होती तो कश्मीर के मुद्दे पर भाजपा और उसके समविचारी संगठन आज क्या कर रहे होते। इस मामले में कांग्रेस नेतृत्व की समझ और संयम दोनों की सराहना करनी पड़ेगी कि एक जिम्मेदार विपक्ष के नाते उन्होंने अभी तक कश्मीर के सवाल पर अपनी राष्ट्रीय और रचनात्मक भूमिका का ही निर्वाह किया है।
गुलाम नबी को तो हीलिंग टच चाहिए, पर बाकी देश को क्या चाहिए?
अभिरंजन कुमार, पत्रकार :
कश्मीर में गुलाम नबी आजाद हीलिंग टच की बात कर रहे थे। 70 साल से वहाँ हीलिंग टच ही हो रहा था। अगर किसी की फीलिंग में ही प्रॉब्लम हो, तो कब तक हीलिंग करें?
शाह फैसल का यूँ डरना बहुत लाजिमी है
भुवन भास्कर, पत्रकार :
फेसबुक पर अपनी टिप्पणियों से पिछले दिनों में चर्चा में आये 2009 के आईएएस टॉपर शाह फैसल ने इंडियन एक्सप्रेस में एक लेख लिखा है।
कश्मीरी दोस्तों के नाम एक खुला खत
राजीव रंजन झा :
आपको बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ा है। मानते हैं। आपके जो पड़ोसी थे ना, वे भी बहुत मुश्किल दौर से गुजरे हैं। मालूम है ना आपको? शायद अपनी ही आँखों से देखा भी हो, अगर उनके साथ होने वाले अपराधों में हिस्सेदार नहीं थे तब भी?
जरा नजाकत से सँभालें कश्मीर : कांग्रेस की सलाह
अभिषेक मनु सिंघवी, प्रवक्ता, कांग्रेस :
जहाँ तक हमारे संविधान की सीमाओं का सवाल है, और जहाँ तक भारत की अक्षुण्णता एवं सुरक्षा का सवाल है, उसमें किसी रूप से कोई समझौता नहीं हो सकता है।
घाटी दे दें? पर किसको दे दें?
प्रीत के. एस. बेदी, सामाजिक टिप्पणीकार :
पहले जरा नैतिक प्रश्न की बात कर लेते हैं। विभाजन के बारे में कुछ भी नैतिक नहीं था। दोनों ओर से लाखों लोग मारे गये और इस पूरी कवायद के बाद एक ऐसा देश बना जिसके दो हिस्से थे।