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ये जंगलराज नहीं है, ये पॉवर सेंटर का ‘बिखराव’ है

सुशांत झा, पत्रकार :
नीतीश कुमार की कानून-व्यवस्था को लेकर प्रतिबद्धता पर व्यक्तिगत रूप से मुझे कोई संदेह नहीं है। उन्होंने पिछले एक दशक में बिहार को ठीक-ठाक पटरी पर लाया है। लेकिन सीवान के पत्रकार की हत्या पर मेरी कुछ अलग राय है।
न्याय क्या सबके लिए बराबर है?

कमर वहीद नकवी, वरिष्ठ पत्रकार :
बड़ी-बड़ी अदालतें हैं। बड़े-बड़े वकील हैं। बड़े-बड़े कानून हैं। और बड़े-बड़े लोग हैं। इसलिए छोटे-छोटे मामले अक्सर ही कानून की मुट्ठी से फिसल जाते हैं! साबित ही नहीं हो पाते! और लोग चूँकि बड़े होते हैं, इतने बड़े कि हर मामला उनके लिए छोटा हो ही जाता है! वैसे कभी-कभार ऐसा हो भी जाता है कि मामला साबित भी हो जाता है। फिर? फिर क्या, बड़े लोगों को बड़ी सज़ा कैसे मिले? इसलिए सजा अक्सर छोटी हो जाती है! और अगर कभी-कभार सजा भी पूरी मिल जाये तो? तो क्या? पैरोल पर एक कदम जेल के अन्दर, दो कदम जेल के बाहर! वह भी न हो सके तो अस्पताल तो हैं ही न!
प्रदूषण नहीं, अपनी जवाबदेही से बचने का शोशा

संदीप त्रिपाठी :
देश की राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण रोकने के लिए तारीख के हिसाब से वाहन चलाने का नियम बनाये जाने से कई सवाल खड़े होते हैं। क्या वाकई दिल्ली सरकार वायु प्रदूषण रोकने के प्रति गंभीर है? क्या दिल्ली सरकार ने यह फैसला पूरी ईमानदारी से सभी संभावित विकल्पों पर भली-भांति विचार करने के बाद लिया है? या क्या केवल अदालत को दिखाने के लिए एक ऊटपटांग फैसला दिल्ली की जनता पर थोप दिया गया है?
कानूनी कुमार

प्रेमचंद :
मि. कानूनी कुमार, एम.एल.ए. अपने आँफिस में समाचारपत्रों, पत्रिकाओं और रिपोर्टों का एक ढेर लिए बैठे हैं। देश की चिन्ताओं से उनकी देह स्थूल हो गयी है; सदैव देशोद्धार की फिक्र में पड़े रहते हैं। सामने पार्क है। उसमें कई लड़के खेल रहे हैं। कुछ परदेवाली स्त्रियाँ भी हैं, फेंसिंग के सामने बहुत-से भिखमंगे बैठे हैं, एक चायवाला एक वृक्ष के नीचे चाय बेच रहा है। कानूनी कुमार (आप-ही-आप) देश की दशा कितनी खराब होती चली जाती है। गवर्नमेंट कुछ नहीं करती। बस दावतें खाना और मौज उड़ाना उसका काम है। (पार्क की ओर देखकर)
बलात्कार: कानून बनाने के अलावा सरकार ने क्या किया?

क़मर वाहिद नक़वी, वरिष्ठ टीवी पत्रकार :
कागज का आविष्कार न हुआ होता, तो सरकारें कैसे चलतीं? दिलचस्प सवाल है! कल्पना कीजिए। आप भी शायद इसी नतीजे पर पहुँचेंगे कि कागज के बिना सरकार चल ही नहीं सकती!