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जन्नत की हूरों के बारे में जाकिर नाइक को खुला पत्र
अभिरंजन कुमार, पत्रकार :
परम आदरणीय जनाब-ए-आला स्कॉलर श्री ज़ाकिर नाइक साहब,
इस्लाम और दुनिया के तमाम धर्मों के बारे में आपके ज्ञान को देखकर चकित हूं। लेकिन एक हज़ार मुद्दों पर जानकारी लेने में मेरी दिलचस्पी कम है। मैं तो बस जन्नत की हूरों के बारे में अधिक से अधिक जानना चाहता हूं। आशा है, जैसे आप भारत से भाग गए हैं, वैसे मेरे इन पैंतीस सवालों से नही भागेंगे।
खुदाई फौजदार
प्रेमचंद :
सेठ नानकचन्द को आज फिर वही लिफाफा मिला और वही लिखावट सामने
आयी तो उनका चेहरा पीला पड़ गया। लिफाफा खोलते हुए हाथ और ह्रदय
दोनों काँपने लगे। खत में क्या है, यह उन्हें खूब मालूम था। इसी तरह के
दो खत पहले पा चुके थे। इस तीसरे खत में भी वही धामकियाँ हैं, इसमें
उन्हें सन्देह न था। पत्र हाथ में लिये हुए आकाश की ओर ताकने लगे।
आखिरी हीला
प्रेमचंद :
यद्यपि मेरी स्मरण-शक्ति पृथ्वी के इतिहास की सारी स्मरणीय तारीखें भूल गयीं, वह तारीखें जिन्हें रातों को जागकर और मस्तिष्क को खपाकर याद किया था; मगर विवाह की तिथि समतल भूमि में एक स्तंभ की भाँति अटल है। न भूलता हूँ, न भूल सकता हूँ।