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अगर…
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मेरी कहानियाँ आप अपने बच्चों को भी सुनाते हैं न?
कहानी इत्तेफाक की
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
सुनिए, आज एक कहानी इत्तेफाक की सुनिए। आज एक लड़का और एक लड़की की कहानी सुनिए।
जिन्दगी अनमोल है, पर असीमित नहीं
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
कर्मचारी बॉस के आगे गिड़गिड़ा रहा था।
“सर, अब आप मुझे शाम सात बजे के बाद मत रोका कीजिए। मुझे रोज शाम सात बजे यहाँ से जाने दिया कीजिए।”
पूरी जिन्दगी एक धोखे में कट गयी
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
कल जबसे मुरारी बापू का फोन आया कि संजय सिन्हा तुम बहुत अच्छी कहानियाँ लिखते हो, मैंने तुम्हारी तीनों किताबें पढ़ीं और अपनी कई कथाओं में तुम्हारा नाम लिया है, मेरे पाँव जमीन पर नहीं पड़ रहे।
जिन्दगी अपनी पसंद की होनी चाहिए
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
बेटे ने जिद पकड़ ली थी कि उसे डायनासॉर वाला खिलौना चाहिए।
डायनासॉर वाला खिलौना बच्चों की पसंद बना हुआ था। वो बैट्री से चलता था, कुछ दूर चल कर रुकता और फिर मुँह से अजीब सी आवाज निकाल कर धुआँ छोड़ता।
सिमरन को जीने का हक है पर जान लेकर नहीं
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
सिमरन अपने प्रेमी के साथ जाने के लिए तड़प रही थी। पर वो अपने पिता को धोखा देकर ऐसा नहीं कर पा रही थी। वो प्रेमी के साथ जीना तो चाहती थी, पर छल से नहीं, इज्जत से। उसने अपने बाऊजी से कातर हो कर कहा था कि वो अपने राज के बिना नहीं जी सकती। बाउजी के लिए बहुत आसान नहीं था खुद को मनाना, पर बेटी की आँखों में प्यार देख कर उन्होंने आखिर में कह ही दिया था, जा बेटी, जी ले अपनी जिन्दगी।
मुलायम मलमल बनाने वाले देश का दिल कठोर
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
आज ज्यादा नहीं लिखूँगा।
सच पूछिए तो आज बिल्कुल नहीं लिखूँगा। मेरा मन ही नहीं है आज कुछ भी लिखने का। कल से मन बहुत उदास है। कल ही बांग्लादेश से उस बच्ची का शव यहाँ लाया गया, जिसने अभी जिन्दगी की राह पर अपना पहला कदम ही आगे बढ़ाया था।
खुद को बदलते हैं, तो संसार बदल जाता है
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
वाह-वाह क्या बात है।
मेरे दफ्तर की एक महिला कर्मचारी मेरे पास आई और बात-बात में कहने लगी कि जिन्दगी बहुत उलझ गयी है।
अच्छाई ढूंढें, जिन्दगी आसान हो जायेगी
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मेरे पिताजी की आदत भी अजीब थी।
खाना खाने बैठते तो एक निवाला तोड़ कर थाली के चारों ओर घूमाते और फिर उसे किनारे रख कर थाली को प्रणाम करते और खाना खाना शुरू करते।
मैं उन्हें ऐसा करते हुए देखता और सोचता कि पिताजी ऐसा क्यों करते हैं?
मन के विश्वास को जिन्दा करें, आपका हर काम बनेगा
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
एक महिला ने मुझे बिलखते हुए फोन किया कि उसकी जिन्दगी में कुछ भी अच्छा नहीं हो रहा, क्या मैं उसे अपने चैनल पर भविष्य बताने वाले पंडित का नंबर दे सकता हूँ?