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दूसरों के साथ वैसा न करें, जो हमें खुद पंसद नहीं

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
वैसे तो चुटकुले हँसाने के लिए होते हैं, लेकिन मैं कई चुटकुलों को सुन कर दुखी हो जाता हूँ।
आज मैं एक ऐसा ही चुटकुला आपको सुनाने जा रहा हूँ, जिसे सुन कर बहुत से लोग मुस्कुराते हैं, हँसते हैं, पर मैं उदास हो जाता हूँ।
अपना लाइक उर्फ अपनी लाइफ

आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
किसी वेबसाइट से खरीदारी करनेवाले जानते हैं कि कोई आइटम वहाँ से खरीदकर लौटना आसान नहीं होता, खरीदारी के फौरन बाद वेबसाइट बताती है कि जिन्होने आप जैसे ये सामान खऱीदा था, उन्होने ये, ये और ये भी खरीदा था, ये, ये आइटम लाइक किये थे।
फेसबुक का लाइकाचार

आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
जी मैं पुराने स्कूल का हूँ, कई महिला मित्र फेसबुक पर प्रोफाइल पिक अपडेट करती हैं, पर मैं उन्हे लाइक नहीं करता, मतलब लाइक करने का मन हो तो भी लाइक के सिंबल को क्लिक ना करता। सुंदर, बहुत स्मार्ट लिखने का दिल करता है, पर, पर उन्ही महिला मित्रों को बाक्सर भाई भी मेरे मित्र हैं, जो बरसों यह उद्घोषणा करते आ रहे हैं कि उनकी बहन की ओर आँख उठाकर भी किसी ने देखा तो उसे खल्लास कर देंगे। किसी महिला मित्र की फोटो को लाइक करने की इच्छा की क्षणों में वह बाक्सर भाई यह कहता दिख जाता है-अच्छा बेट्टे, मेरी बहन की तरफ ना सिर्फ तूने आँख उठाकर देखा, बल्कि उसे लाइक तक किया, आज निकलियो घर से।
खुद की इज्जत करने वाले दूसरों की भी इज्जत करते हैं

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
कई लोगों को अपनी तारीफ अच्छी नहीं लगती। कई लोग अपनी तारीफ सुन कर थोड़ा झेंप जाते हैं, लेकिन मुझे अपनी तारीफ पसंद है। मैं बहुत से अच्छे काम इसलिए करता हूँ ताकि मुझे तारीफ मिले।
पराये मर्द का लाइक

आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार
शिष्टाचार अलग है और फेसबुक का शिष्टाचार अलग है।
फेसबुक लिखाड़ों के सामने मँडराया खतरा!

शिव ओम गुप्ता :
फेसबुक ने आम जन को भी एक लेखक बना दिया, जहाँ बगैर किसी अवरोध के हम अपनी मनपसंद भाषा और शैली में कुछ भी लिखने को आजाद थे और यह खतरा भी नहीं था कि कोई क्या कर लेगा? ज्यादा-से-ज्यादा लाइक नहीं करेगा। तो ना करे, उसका क्या?