Tag: Man
ज्ञान कभी व्यर्थ नहीं जाता
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
आज एक सुनी सुनाई कहानी सुनाता हूँ।
वैसे भी कई लोगों ने मुझे फेसबुक वाला बाबा बुलाना शुरू कर दिया है। बाबा क्यों, ये मुझे नहीं पता। मेरे तो बाल भी अभी सफेद नहीं हुए पर कुछ लोगों को लगता है कि ज्ञान देने वाला बाबा ही होता है। मुमकिन है टीवी पर तमाम बाबाओं को ऐसी बातें करते देख उनके मन में ये भाव आया हो कि ज्ञान तो बाबा ही देते हैं।
सबसे अभागा वो आदमी जिसके पास रिश्ते नहीं
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मेरे दफ्तर में काम करने वाली एक महिला ने कल अपना इस्तीफा सौंप दिया। वो मुझसे मिलने आयी थी और बता रही थी कि उसे बहुत अफसोस है कि वो नौकरी छोड़ कर जा रही है, पर मजबूरी है।
मैंने उससे पूछा कि ऐसी क्या मजबूरी है?
अपने बच्चों को आदमी बनाइए
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
आप मोनू भैया को नहीं जानते।
वो मेरे पिछले मुहल्ले में रहते हैं और मेरी उनसे मुलाकात होती रहती है। अब आप सोच रहे होंगे कि आज मैं सुबह-सुबह मोनू भैया की कहानी क्यों लेकर आपके पास आ गया हूँ।
मृत्यु महासत्य है
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
अपने 'पिता' की अस्थियों को विसर्जित करने के लिए कल मैं गढ़ मुक्तेश्वर के पास ब्रज घाट गया। दिल्ली में गंगा नहीं, जमुना है। पर हमारे यहाँ मान्यता है कि मरने वाले को मुक्ति ही तब मिलती है, जब उसकी अस्थियाँ गंगा में प्रवाहित की जाती हैं।
जलन छोड़, अपनी किस्मत बदलें
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
कुछ कहानियाँ पढ़ कर हंसी आती है। कुछ कहानियाँ पढ़ कर रोना आता है। जिन कहानियों को पढ़ कर हम हँसते या रोते हैं, उनके बारे में हम राय बना लेते हैं कि यह कहानी अच्छी है या बुरी है। पर हम यह सोचने की कोशिश नहीं करते कि हर कहानी कुछ न कुछ कहती है, संदेश देती है। जिस कहानी को सुन कर हमें कोई संदेश न मिले, वो कहानी उस फल की तरह है, जिसमें रस नहीं होता।
चाहत में शिद्दत हो, तो कुछ भी मिलेगा
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
मेरी मुलाकात बहुत से ऐसे लोगों से होती है, जिन्होंने जो चाहा पाया। बहुत से ऐसे लोगों से भी होती है, जो कुछ पाना चाहते तो थे, लेकिन नहीं पा सके।
पौधे को भी जीने के लिए रिश्ते चाहिए
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
अब से कुछ देर बाद मैं जबलपुर में पहुँच जाऊँगा।
जहाँ उम्मीद, वहीं जिन्दगी
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
यह तो आप जानते ही हैं कि सबसे ज्यादा खुशी और सबसे ज्यादा दुख, दोनों अपने ही देते हैं।
मन की खुशी
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मुझे ठीक से याद है कि गुलबवा की कहानी किसने सुनायी थी। इस सच्ची कहानी सुनाते हुए उसने बताया था कि हर आदमी में दो आदमी रहते हैं। एक बाहर का आदमी और दूसरा भीतर का आदमी। भीतर का आदमी मन है, बाहर का आदमी तन है।
गोश्त
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
आज जो कहानी मैं लिख रहा हूँ, वो मुझे नहीं लिखनी थी। आज मेरे मन में था कि मैं उस राजा की कहानी आपको सुनाऊँगा, जिसने एक दिन मुनादी पिटवा कर अपना सब कुछ लुटा दिया था।