Friday, November 22, 2024
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घर जमाई

प्रेमचंद  :

हरिधन जेठ की दुपहरी में ऊख में पानी देकर आया और बाहर बैठा रहा। घर में से धुआँ उठता नजर आता था। छन-छन की आवाज भी आ रही थी। उसके दोनों साले उसके बाद आये और घर में चले गए। दोनों सालों के लड़के भी आये और उसी तरह अंदर दाखिल हो गये; पर हरिधन अंदर न जा सका।

प्यार को प्यार ही रहने दो

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

“माँ, उठो। माँ, सुनो मैं क्या पूछ रहा हूँ। दो दिन पहले मैंने पोस्ट में लिख दिया था कि पांचाल के नृपति द्रुपद ने कृष्ण को अपनी बेटी द्रौपदी से विवाह के लिए आमंत्रित किया था, तो कुछ लोगों ने नाराजगी जताई और कहा कि मैं धर्म और पौराणिक कहानियों के विषय में कुछ नहीं जानता, केवल काल्पनिक कहानी लिख रहा हूँ। 

माँ

प्रेमचंद :   

आज बन्दी छूटकर घर आ रहा है। करुणा ने एक दिन पहले ही घर लीप-पोत रखा था। इन तीन वर्षों में उसने कठिन तपस्या करके जो दस-पाँच रूपये जमा कर रखे थे, वह सब पति के सत्कार और स्वागत की तैयारियों में खर्च कर दिये।

यही है जिन्दगी, यही है रिश्ता

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

करीब 30 साल पहले मैं अपनी जन्मभूमि से दूर जा रहा था तब मेरी खुली आँखों में हजारों यादें सिमटी थीं।

मुश्किल में मित्र की पहचान होती है

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

जब माँ मुझे और इस संसार को छोड़ कर जा रही थी तब मैं नहीं सोच पाया था कि माँ के चले जाने का मतलब क्या होता है। मेरी नजर में माँ कैंसर की मरीज थी और भयंकर पीड़ा से गुजर रही थी।

आगे बढ़ते हम, पीछे छूटते अपने

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

मेरे पड़ोस वाली रेखा दीदी की शादी मेरी जानकारी में सबसे पहले चाँद के पास वाले ग्रह के एक प्राणी से हुई थी।

98.88% पर फेल

आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :

कभी सोचता हूँ कि सही टाइम पर धरती पर आ गये, और बहुत पहले ही स्कूल की शिक्षा से पार हो गये, इज्जत बच गयी।

ये वक्त गुजर जाएगा

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

रोज सुबह जगना और फिर लिखना मेरे नियम में शुमार हो चुका है।

लक्ष्मी जी के आगे सब नतमस्तक

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

माँ की सुनाई सभी कहानियाँ मैं एक-एक कर आपके साथ साझा कर रहा हूँ।

मुझे बहुत बार आश्चर्य भी होता है कि माँ को कैसे इतनी कहानियाँ याद रहती थीं।

अपने कर्म के सिद्धान्त को अमल में लायें

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

माँ, कल आपने कहा था कि मैं बहुत सी कहानियाँ सुनाऊँगी।”

“हाँ-हाँ, क्यों नहीं। अपने राजा बेटा को नहीं सुनाऊँगी तो किसे सुनाऊँगी।

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