Monday, November 18, 2024
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दिल्ली वालों का अभी कुछ होना बाकी है

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

बहुत साल पहले जब मैं स्कूल में पढ़ता था, जय प्रकाश नारायण ने बिहार में स्कूल बंद करा दिये थे। 

हार का ठीकरा सेनापति पर तो जीत का श्रेय भी उसी को

पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :

सुनील चतुर्वेदी की समस्या यह है कि वह बोर्ड प्रबंधन के अंग है। न तो वह खिलाड़ी हैं और न ही समालोचक। सुनील को हर शब्द नाप तौल कर लिखना होता है। उनके पास हम जैसी आजादी नहीं है। सुनील भाई आपने संतोष सूरी के कमेंट के संकेत को शायद अच्छी तरह समझा होगा। आप दूसरों के लिए जो करते हो वही दूसरा आपके साथ करेगा। यही जमाने की रीत है भाई।

बदल गया बिहार

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

एक श्राद्ध में शामिल होने के लिए मुझे दिल्ली से पटना आना पड़ा। पटना इन दिनों चुनावी रंग में रंगा है। अब चुनाव से मेरा क्या लेना देना? एयरपोर्ट से होटल तक पूरा शहर तरह-तरह के चुनावी पोस्टरों से पटा पड़ा है। कहीं लिखा है, “अबकी बार, नीतीश कुमार” तो कहीं लिखा है, “बदलेगा बिहार, बदलेगी सरकार।” 

मुसलिम हलचल के चार कोण!

कमर वहीद नकवी, वरिष्ठ पत्रकार :  

अल्पसंख्यक राजनीति में नयी खदबदाहट शुरू हो गयी है! एक तरफ हैं संघ, बीजेपी और एनडीए सरकार, दूसरी तरफ है मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड, तीसरा कोण है मजलिस इत्तेहादुल मुसलिमीन के असदुद्दीन ओवैसी का और चौथा कोण है मुसलिम महिलाओं की एक संस्था भारतीय मुसलिम महिला आन्दोलन।

‪‎यादें‬ – 13

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

अब यहीं से शुरू हो सकती है वो कहानी, जिसकी भूमिका बाँधते-बाँधते मैं यहाँ तक पहुँचा हूँ। 

कवि और ‘कवी’

आनंद कुमार, डेटा एनालिस्ट  : 

त्रिभुवन जी की एक पोस्ट में कवि और ‘कवी’ की कहानी थी, यानि कविता करने वाले और कौवे की। उसमें होता क्या है कि एक कवि को प्यास लगी। आसपास उन्हें एक हलवाई की दुकान दिखी, जहाँ गरमा-गरम जलेबियाँ बन रहीं थीं। वो वहाँ पहुँचे, पानी पीने के बाद जलेबी खाने का भी मन हुआ तो जलेबी दही ली और वहीं खाने बैठ गये ।

क्यों शानदार चुटकुला है “पाँच साल केजरीवाल”!

राजीव रंजन झा : 

केजरीवाल हमेशा अपने लिए नयी मंजिलें तय करते आये हैं। उनकी हर मंजिल की एक मियाद होती है। जब तक उसकी अहमियत होती है, तभी तक वहाँ टिकते हैं। नौकरी तब तक की, जब तक थोड़ा रुतबा हासिल करने के लिए जरूरी थी। एनजीओ तब तक चलाया, जब तक उससे एक सामाजिक छवि बन जाये। आंदोलन तब तक चलाया, जब तक राजनीतिक दल बनाने लायक समर्थक जुट जायें।

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