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अंत में सेल और पहले भी

आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
साल का अंत आ पहुँचा है और अखबारों, टीवी-चैनलों पर इयर-एंड सेल के इश्तिहार शुरू हो गये हैं। जी अगले हफ्ते आप न्यू ईयर सेल के इश्तिहार भी देख रहे होंगे। साल की शुरुआत सेल से होती है और अंत भी।
दिल्ली में हंड्रेड परसेंट

आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
एक अखबार में छपी रिपोर्ट ने बताया कि दिल्ली में 64.36% मकान मालिक हैं। 31% किरायेदार हैं। दिल्ली में ये कुछ कुछ गोत्र टाइप मामला है, मकान मालिक ऊंचे गोत्र का, किरायेदार उससे नीचे गोत्र का।
हुक्मरान चला रहे अपनी दुकान

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
छोड़िए उस आज उस राजा की कहानी को, जिसने मुनादी पिटवाई थी कि मेरा सब ले जाओ। आज कहानी सुनाता हूँ, उन चार दोस्तों की जिन्होंने मिल कर बिजनेस करने की ठानी थी।
यादें – 12

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
अगर मैं जेपी आंदोलन, इमरजंसी, इन्दिरा गाँधी, दीदी, विमला दीदी को इतनी शिद्दत से लगातार याद करता हूँ, तो मुझे याद करना होगा 1984 की उस तारीख को जिस दिन इन्दिरा गाँधी की हत्या हुई थी। मुझे याद करना होगा उस 'जनसत्ता' अखबार को जहां मेरी किस्मत के फूल खिलने जा रहे थे। और मुझे याद करना होगा प्रभाष जोशी को, जिनसे 'जनसत्ता' में रहते हुए चाहे संपादक और उप संपादक के पद वाली जितनी दूरी रही हो, लेकिन अखबार छूटते ही हमने दिल खोल कर बातें कीं।
इमरजंसी – एक याद (2)

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
शायद पिताजी को इस बात का आभास हो चुका था कि दिल्ली में कुछ हो रहा है। वैसे तो पिताजी की आदत में शुमार था सुबह और शाम को रेडियो पर खबरें सुनना। सुबह आठ बजे रेडियो ऑन था।