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रिश्तों की तलाश

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
आज आपको बहुत से सवालों के जवाब मिल जाएँगे।
माता का हृदय

प्रेमचंद :
माधवी की आँखों में सारा संसार अँधेरा हो रहा था। कोई अपना मददगार न दिखायी देता था। कहीं आशा की झलक न थी। उस निर्धन घर में वह अकेली पड़ी रोती थी और कोई आँसू पोंछनेवाला न था। उसके पति को मरे हुए 22 वर्ष हो गये थे। घर में कोई सम्पत्ति न थी। उसने न-जाने किन तकलीफों से अपने बच्चे को पाल-पोसकर बड़ा किया था। वही जवान बेटा आज उसकी गोद से छीन लिया गया था और छीननेवाले कौन थे ? अगर मृत्यु ने छीना होता तो वह सब्र कर लेती। मौत से किसी को द्वेष नहीं होता। मगर स्वार्थियों के हाथों यह अत्याचार असह्य हो रहा था।
रवीश कुमार की पीड़ा
बहन की पाती भाइयों के नाम : अगले साल जरूर आना

पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :
हम चार भाइयों के परिवार में कुल छह बेटे और छह बेटियों में सबसे छोटी है श्वेता। बीस बरस की श्वेता राखी के दिन उदास थी। अकेले कमरें में आँसुओं के बीच उसने अपना दर्द कविता में उड़ेल दिया। छह मे तीन भाई विदेश में तो बचे तीन दूसरे शहरों में। चिकन पाक्स हो जाने से बंगलोर में निफ्ट से फैशन डिजाइनिंग कर रही श्वेता हास्टल से बाहर नहीं निकली। डर था कि घर जाने से माँ इन्दिरा, भाभी रिंकू, भतीजी मिहिका और भतीजा प्रांशु भी कहीं चेचक की चपेट में न आ जाएँ।
अपने-अपने रिश्तों का बोध होना चाहिए

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
पत्नी धीरे से आकर कान में फुसफुसाई कि शायद वो माँ बनने वाली है।
ट्रेन की रफ्तार बहुत तेज थी। मैं ऊपर बर्थ पर लेट कर किताब पढ़ रहा था।