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सिद्धू तय करें कि किस तरफ हैं वे
संदीप त्रिपाठी
कांग्रेस नेता, पंजाब सरकार में कैबिनेट मंत्री, पूर्व क्रिकेटर, कॉमेडी शो के पूर्व जज नवजोत सिंह सिद्धू का पाकिस्तान के नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री इमरान खान के शपथ ग्रहण में जाना, वहाँ गुलाम कश्मीर के मुखिया के साथ बैठना और फिर पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के गले लगना विवादों के घेरे में है। इस पूरे प्रकरण में में कई सवाल हैं।
आतंक के एटीएम
आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
संयुक्त राष्ट्र संघ में पाक पीएम नवाज शरीफ ने बताया-जी हम तो आतंक के विरोधी हैं। हम तो आतंक के खिलाफ कार्रवाई करते हैं आगे भी करेंगे।
दुश्मन को मारने से पहले अपनी चारदीवारी को मजबूत करो
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
हो सकता है आप में से कुछ लोग 11 सितंबर 2001 को न्यूयार्क में हुए आतंकवादी हमले के चश्मदीद रहे हों। हो सकता है बहुत से लोग न रहे हों। लेकिन मैं रहा हूँ। मैंने 11 सितंबर 2001 में अमेरिका पर हुए आतंकवादी हमले को बहुत करीब देखा और जिया है। मैं चश्मदीद हूँ उस हमले का और हमले में मरे दस हजार लोगों के शव का।
कैसे सुलझे गुत्थी पाकिस्तान की?
क़मर वहीद नक़वी, पत्रकार :
जो सबसे आसान काम था, वही हमने अब तक नहीं किया। हमने पाकिस्तान को व्यापार के लिए 'एमएफएन' यानी 'मोस्ट फेवर्ड नेशन' का दर्जा दे रखा है। इसे हमारी सरकार आसानी से वापस ले सकती है। लेकिन फिलहाल सरकार ने ऐसा नहीं किया।
एक विफल देश का शोक गीत !
संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
पाकिस्तान प्रायोजित हमलों से तबाह भारत आज दुखी है, संतप्त है और क्षोभ से भरा हुआ है। उसकी जंग एक ऐसे देश से है जो असफल हो चुका है, नष्ट हो चुका है और जिसके पास खुद को संयुक्त रखने का एक ही उपाय है कि भारत के साथ युद्ध के हालात बने रहें। भारत का भय ही अब पाकिस्तान के एक रहने का गारंटी है।
हमारा कश्मीर, तुम्हारा बलूचिस्तान
संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
देर से ही सही भारत की सरकार ने एक ऐसे कड़वे सच पर हाथ रख दिया है जिससे पाकिस्तान के सत्ता प्रतिष्ठान को मिर्ची लगनी ही थी। दूसरों के मामले में दखल देने और आतंकवाद को निर्यात करने की आदतन बीमारियाँ कैसे किसी देश को खुद की आग में जला डालती हैं, पाकिस्तान इसका उदाहरण है। बदले की आग में जलता पाकिस्तान कई लड़ाईयाँ हार कर भारत के खिलाफ एक छद्म युद्ध लड़ रहा है और कश्मीर के बहाने उसे जिलाए हुए है। पड़ोसी को छकाए-पकाए और आतंकित रखने की कोशिशों में उसने आतंकवाद को जिस तरह पाला-पोसा और राज्याश्रय दिया, आज वही लोग उसके लिए भस्मासुर बन गये हैं।
इस गर्जन-तर्जन से क्या हासिल?
संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
जब पूरा पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान कश्मीर में आग लगाने की कोशिशें में जुटा है तब हमारे गृहमंत्री राजनाथ सिंह पाकिस्तान क्यों गये, यह आज भी अबूझ पहेली है। वहाँ हुयी उपेक्षा, अपमान और भोजन छोड़ कर स्वदेश आ कर उनकी ‘सिंह गर्जना’ से क्या हासिल हुआ है? क्या उनके इस प्रवास और आक्रामक वक्तव्य से पाकिस्तान कुछ भी सीख सका है? क्या उसकी सेहत पर इससे कोई फर्क पड़ा है? क्या उनके पाकिस्तान में दिए गए व्याख्यान से पाकिस्तान अब आतंकवादियों की शहादत पर अपना विलाप बंद कर देगा? क्या पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान भारत के प्रति सद्भाव से भर जाएगा और कश्मीर में आतंकवादियों को भेजना कर देगा? जाहिर तौर पर इसमें कुछ भी होने वाला नहीं है।
गुलाम नबी को तो हीलिंग टच चाहिए, पर बाकी देश को क्या चाहिए?
अभिरंजन कुमार, पत्रकार :
कश्मीर में गुलाम नबी आजाद हीलिंग टच की बात कर रहे थे। 70 साल से वहाँ हीलिंग टच ही हो रहा था। अगर किसी की फीलिंग में ही प्रॉब्लम हो, तो कब तक हीलिंग करें?
घाटी दे दें? पर किसको दे दें?
प्रीत के. एस. बेदी, सामाजिक टिप्पणीकार :
पहले जरा नैतिक प्रश्न की बात कर लेते हैं। विभाजन के बारे में कुछ भी नैतिक नहीं था। दोनों ओर से लाखों लोग मारे गये और इस पूरी कवायद के बाद एक ऐसा देश बना जिसके दो हिस्से थे।
अपने पुरुषार्थ से पाकिस्तान को सबक सिखा सकते हैं
अभिरंजन कुमार, पत्रकार :
मोदी के समूचे भाषण के दौरान अमेरिकी संसद में लगातार तालियाँ बजती रहीं। यद्यपि उनकी अंग्रेजी से मैं कभी इम्प्रेस नहीं होता, फिर भी मनमोहन की अंग्रेजी से इसे बेहतर मानता हूँ। मनमोहन तो हिंदी बोलते थे या अंग्रेजी-कभी लगता ही नहीं था कि उनकी तबीयत ठीक-ठाक है।