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अपने बच्चों को आदमी बनाइए
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
आप मोनू भैया को नहीं जानते।
वो मेरे पिछले मुहल्ले में रहते हैं और मेरी उनसे मुलाकात होती रहती है। अब आप सोच रहे होंगे कि आज मैं सुबह-सुबह मोनू भैया की कहानी क्यों लेकर आपके पास आ गया हूँ।
प्रेम करने वाला सबको संग लेकर चलते हैं
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मेरी नौकरी पहले लगी थी, पत्रकारिता की पढ़ाई में दाखिला बाद में मिला था। जिन दिनों मैं पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहा था, एक लड़की से मेरी दोस्ती हुई। मेरी तरफ से दोस्ती सिर्फ दोस्ती तक सीमित थी, लेकिन अक्सर लड़कियाँ दोस्ती, प्रेम और शादी तीनों की चाशनी बना लेती हैं। उसने भी ऐसा ही किया और जिस दिन कॉलेज में मेरा आखिरी दिन था वो मेरे पास शादी का प्रस्ताव लेकर पहुँच गयी।
जोधा-अकबर पेरेंट्स – टीचर मीटिंग में
आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
अभी लौटा हूँ एक पीटीएम यानी पेरेंट्स टीचर मीटिंग से।
जरा कल्पना कीजिये, शाहजादा सलीम की पीटीएम यानी पेरेंट्स टीचर्स मीटिंग चल रही है। क्राफ्ट मैडम शिकायत कर रही है- जरा भी इंटरेस्ट नहीं दिखाता। क्राफ्ट क्लास में नहीं आता। कला का जरा सा भी एलीमेंट नहीं इसमें।
वही कीजिए, जो अच्छा लगे
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
मेरी शादी बहुत सामान्य ढंग से मेरे ढेर सारे दोस्तों की मौजूदगी में दिल्ली के आर्य समाज मंदिर में हुई थी। शादी के बाद जब मैं अपनी पत्नी के पिता से मिलने उनके घर गया तो उन्होंने मुझे समझाया कि जो हुआ सो हुआ, अब मुझे दोबारा धूमधाम से शादी करनी चाहिए। कुछ इस तरह शादी करनी चाहिए, जिसमें उनके और मेरे सभी रिश्तेदार मौजूद हों।
यू डोंट नो एनीथिंग ना
आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार
डाँटे या डाँट खायें- फंडामेंटल सवाल ये ही है, जिन घरों में बच्चे हैं, वहाँ पेरेंट्स क्या करें।