Friday, November 22, 2024
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समस्या

प्रेमचंद : 

मेरे दफ्तर में चार चपरासी हैं। उनमें एक का नाम गरीब है। वह बहुत ही सीधा, बड़ा आज्ञाकारी, अपने काम में चौकस रहने वाला, घुड़कियाँ खाकर चुप रह जानेवाला यथा नाम तथा गुण वाला मनुष्य है। मुझे इस दफ्तर में साल-भर होते हैं, मगर मैंने उसे एक दिन के लिए भी गैरहाजिर नहीं पाया।

गरीबी सचमुच अभिशाप है

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

"डाक्टर साहब मेरा बेटा ठीक होगा कि नहीं, सच-सच बताइए।"

चुप हैं किसी सब्र से तो पत्थर न समझ हमें…

राजेश रपरिया :

मोदी सरकार के लगभग दो साल के राज में खेती और उससे जुड़े लोगों के आर्थिक हालात मनमोहन सिंह राज के अंतिम दो तीन सालों से ज्यादा खराब हैं। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में हताशा व्याप्त है प्राकृतिक आपदाओं की बेरहम मार तो खेती को झेलनी ही पड़ी है पर मोदी सरकार के रवैये ने खेती के संकट को खूंखार बना दिया है। अनेक राज्यों में किसानों की बढ़ती आत्महत्याएँ ग्रामीण भारत में बढ़ती हताशा और निराशा का द्योतक है। 

प्लीज, कम इनफोर्मेशन दें

आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :

स्नैपडील, फ्लिपकार्ट, एमेजन, मायंत्रा के आनलाइन शापिंग के जमाने में घणी फँसावटें हैं।

कानूनी कुमार

प्रेमचंद :

मि. कानूनी कुमार, एम.एल.ए. अपने आँफिस में समाचारपत्रों, पत्रिकाओं और रिपोर्टों का एक ढेर लिए बैठे हैं। देश की चिन्ताओं से उनकी देह स्थूल हो गयी है; सदैव देशोद्धार की फिक्र में पड़े रहते हैं। सामने पार्क है। उसमें कई लड़के खेल रहे हैं। कुछ परदेवाली स्त्रियाँ भी हैं, फेंसिंग के सामने बहुत-से भिखमंगे बैठे हैं, एक चायवाला एक वृक्ष के नीचे चाय बेच रहा है। कानूनी कुमार (आप-ही-आप) देश की दशा कितनी खराब होती चली जाती है। गवर्नमेंट कुछ नहीं करती। बस दावतें खाना और मौज उड़ाना उसका काम है। (पार्क की ओर देखकर)

नशा

प्रेमचंद :   

ईश्वरी एक बड़े जमींदार का लड़का था और मैं एक गरीब क्लर्क का, जिसके पास मेहनत-मजूरी के सिवा और कोई जायदाद न थी। हम दोनों में परस्पर बहसें होती रहती थीं। मैं जमींदारी की बुराई करता, उन्हें हिंसक पशु और खून चूसने वाली जोंक और वृक्षों की चोटी पर फूलने वाला बंझा कहता। वह जमींदारों का पक्ष लेता, पर स्वभावत: उसका पहलू कुछ कमजोर होता था, क्योंकि उसके पास जमींदारों के अनुकूल कोई दलील न थी।

गुणों का कंगाल होता है विलेन

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

हीरो की माँ, बहन और पत्नी या प्रेमिका तीनों खंभे से बंधी हुयी हैं। हीरो कई-कई पहलवानों से घिरा है।

दलित हो तो दावत खिलाओ

विकास मिश्रा, आजतक 

रामभरोसे दरवाजा खोलो, मैं नेता सुर्तीलाल। 

रामभरोसे - नेताजी आज गरीब के घर का रास्ता कैसे भूल गये। 

शुक्रिया सीसा, दुनिया को आइना दिखाने के लिए!

कमर वहीद नकवी , वरिष्ठ पत्रकार :

कहानी बिलकुल फिल्मी लगती है, लेकिन फिल्मी है नहीं। कहानी बिलकुल असली है।

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