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शांति

प्रेमचंद :
स्वर्गीय देवनाथ मेरे अभिन्न मित्रों में थे। आज भी जब उनकी याद आती है, तो वह रंगरेलियाँ आँखों में फिर जाती हैं, और कहीं एकांत में जाकर जरा देर रो लेता हूँ।
बड़े भाई साहब

प्रेमचंद :
मेरे भाई साहब मुझसे पाँच साल बड़े थे, लेकिन केवल तीन दरजे आगे। उन्होंने भी उसी उम्र में पढ़ना शुरू किया था जब मैंने शुरू किया था; लेकिन तालीम जैसे महत्व के मामले में वह जल्दबाजी से काम लेना पसंद न करते थे।
बेटोंवाली विधवा

प्रेमचंद :
पंडित अयोध्यानाथ का देहांत हुआ तो सबने कहा, ईश्वर आदमी की ऐसी ही मौत दे। चार जवान बेटे थे, एक लड़की। चारों लड़कों के विवाह हो चुके थे, केवल लड़की क्वाँ री थी। संपत्ति भी काफी छोड़ी थी। एक पक्का मकान, दो बगीचे, कई हजार के गहने और बीस हजार नकद।
माँ

प्रेमचंद :
आज बन्दी छूटकर घर आ रहा है। करुणा ने एक दिन पहले ही घर लीप-पोत रखा था। इन तीन वर्षों में उसने कठिन तपस्या करके जो दस-पाँच रूपये जमा कर रखे थे, वह सब पति के सत्कार और स्वागत की तैयारियों में खर्च कर दिये।
ईदगाह

प्रेमचंद :
रमजान के पूरे तीस रोजों के बाद ईद आयी है। कितना मनोहर, कितना सुहावना प्रभाव है। वृक्षों पर अजीब हरियाली है, खेतों में कुछ अजीब रौनक है, आसमान पर कुछ अजीब लालिमा है। आज का सूर्य देखो, कितना प्यारा, कितना शीतल है, यानी संसार को ईद की बधाई दे रहा है।
अलग्योझा : मानसरोवर खंड 1

प्रेमचंद :
भोला महतो ने पहली स्त्री के मर जाने बाद दूसरी सगाई की तो उसके लड़के रग्घू के लिये बुरे दिन आ गये। रग्घू की उम्र उस समय केवल दस वर्ष की थी।