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एडवेंचर टूरिज्म के पैकेज
आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
सिकंदर जब भारत फतह के लिए आया था, तो दिल्ली से वापस हो लिया था, पता है क्यों, दिल्ली में नदी और नाली का फर्क बाऱिश में खत्म हो जाता है। सिकंदर ने अपने सेनापति से कहा-झेलम, चिनाब जैसी नदियाँ जब हम पार करते हैं, तो हमें यह पता होता है कि ये नदियाँ हैं। दिल्ली में जिसे सड़क समझो, वह नाला निकलता है, जिसे नाला समझो, वह नदी निकलती है। जिसे नदी समझो वह कूड़े का ढेर निकलता है। दिल्ली बहुतै कनफ्यूजिंग है भाई।
हिन्दी में नौकरी की संभावना कहाँ है
संजय कुमार सिंह, संस्थापक, अनुवाद कम्युनिकेशन:
हिन्दी में नौकरी की संभावनाएँ लगातार कम हुई हैं। हो रही हैं। एक समय था जब हिन्दी टाइपराइटर पर कोई ऐसा-वैसा बैठ भी नहीं सकता था। टाइपिंग से अनजान व्यक्ति शायद एक शब्द भी टाइप नहीं कर पाता। अगर हिन्दी में काम करना है, कुछ भी, कितना भी तो हिन्दी टाइपिस्ट के बिना काम नहीं हो सकता था। इसलिए ज्यादातर दफ्तरों में बिना काम के भी टाइपिस्ट होते थे या वहाँ काम ही ना हो तो अलग बात है।