Friday, October 24, 2025
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तो अब सिद्धू भैया का करिहैं…

संदीप त्रिपाठी :

नवजोत सिंह सिद्धू अब क्या करेंगे? पूर्व क्रिकेटर, कमेंटेटर, कॉमेडी शो जज और भाजपा नेता नवजोत सिंह सिद्धू ने राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है। उनकी पत्नी नवजोत कौर सिद्धू, जो पंजाब में भाजपा विधायक और संसदीय सचिव थीं, उन्होंने भी अपने पदों से इस्तीफा दे दिया है। हालाँकि अभी इन दोनों ने भाजपा की सदस्यता से इस्तीफा नहीं दिया है लेकिन इनके आम आदमी पार्टी में जाने के कयास खूब लग रहे हैं। सवाल यह है कि अब सिद्धू क्या करेंगे?

राजनीतिक चंदा

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

आज की कहानी मुझे मेरे दफ्तर में कोई सुना रहा था। बता रहा था कि उसने शायद ऐसा कभी बहुत पहले अखबार में पढ़ा था, या फिर किसी वरिष्ठ पत्रकार ने उससे साझा किया था। 

नशा करके वाला आदमी तन के साथ मन भी गंवाता है

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

एक साधु थे। कहीं जा रहे थे। रास्ते में कुछ बदमाश लड़कों ने उन्हें घेर लिया। पूछा कि महाराज, कहाँ जा रहे हैं? साधु ने कहा कि नदी में नहाने जा रहा हूँ। लड़कों ने उनसे कहा कि महाराज, आपने जिन्दगी में कभी पाप किया है या नहीं? साधु महाराज कहने लगे कि नहीं, कभी नहीं। मैं तो साधु हूँ, पाप से मेरा क्या नाता?
“नहीं? यूँ ही कभी मदिरापान? किसी स्त्री के साथ संबंध?”

तख्त श्री केशगढ़ साहिब – आनंदपुर साहिब

विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :

सिखों के पाँच तख्त हैं देश में। इनमें आनंदपुर साहिब का खास महत्व है। पंजाब के रूपनगर जिले में स्थित आनंदपुर साहिब  सिखों में अत्यंत पवित्र शहर माना जाता है। इस शहर की स्थापना 1665 में नौंवे गुरु गुरु तेग बहादुर साहिब जी ने की थी। यह सिख धर्म में अत्यंत पवित्र शहर इसलिए है, क्योंकि यहीं पर खालसा पंथ की स्थापना हुई थी। साल 1699 में बैशाखी के दिन आनंदपुर साहिब में खालसा पंथ की स्थापना दसवें गुरु गुरु गोबिंद सिंह जी ने की। इस दिन उन्होंने पाँच प्यारों को सबसे पहले अमृत छकवा कर सिख बनाया। आमतौर पर तलवार और केश तो सिख पहले से ही रखते थे। अब उनके लिए कड़ा, कंघा और कच्छा भी जरूरी कर दिया गया।

याकूब मेमन और एक सवाल!

कमर वहीद नकवी, वरिष्ठ पत्रकार:

याकूब मेमन को तो फाँसी हो चुकी। बहस जारी है और शायद अभी यह बहस जारी रहे। बहुत-सारी बातें हो चुकी हैं। मजहबी रंग की बातें हो चुकी हैं, राष्ट्रवादी जुमलों की तोपें चल चुकी हैं, कानूनी दाँव-पेंच हो चुके हैं। फिर भी बहस अभी जारी है कि याकूब को फाँसी होनी चाहिए थी या नहीं? लोगों के अपने-अपने निष्कर्ष हैं, जिससे वे डिगना नहीं चाहते। 

चुप्पी

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

सर्दी के दिन थे। बुआ आँगन में चटाई बिछा कर अपने पोते को सरसों का तेल लगा रही थी। हम ढेर सारे बच्चे वहीं छुपन छुपाई खेल रहे थे।

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