Sunday, April 6, 2025
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राजनीति बतर्ज मुख्तार अन्सारी

क़मर वहीद नक़वी, पत्रकार :

पार्टियाँ न दाग देखती हैं, न धब्बा, बस बाहुबल, धनबल, धर्म, जाति के समीकरणों की गोटियाँ बिठाती हैं। आपको हैरानी होगी जान कर कि अभी उत्तराखंड में मुख्यमंत्री हरीश रावत ने पूरा जोर लगा कर बीजेपी के जिस नेता को काँग्रेस का टिकट दिलवाया है, उसके खिलाफ काँग्रेस की ही सरकार ने 2012 में साम्प्रदायिक उन्माद भड़काने के आरोप में मुकदमा दर्ज किया था! बीजेपी भी पीछे नहीं है।

तेरा धन, न मेरा धन!

कमर वहीद नकवी, पत्रकार :

सरकार को उम्मीद है कि अगले डेढ़-दो वर्षों में वह बिना नकदी की अर्थव्यवस्था के अपने अभियान को एक ऐसे मुकाम तक पहुँचा देगी, जहाँ से वोटरों को, खास कर युवाओं को देश के 'आर्थिक कायाकल्प' की एक लुभावनी तस्वीर दिखायी जा सके।

‘सिविल कोड नहीं, तो वोट नहीं!’

क़मर वहीद नक़वी, पत्रकार :

संघ के एक बहुत पुराने और खाँटी विचारक हैं, एम.जी. वैद्य। उनका सुझाव है कि जो लोग यूनिफार्म सिविल कोड को न मानें, उन्हें मताधिकार से वंचित कर देना चाहिए। खास तौर से उनके निशाने पर हैं मुसलमान और आदिवासी। उन्होंने अपने एक लेख में साफ-साफ लिखा है कि 'जो लोग अपने धर्म या तथाकथित आदिवासी समाज की प्रथाओं के कारण यूनिफार्म सिविल कोड को न मानना चाहें, उनके लिए विकल्प हो कि वह उसे न मानें। लेकिन ऐसे में उन्हें संसद और विधानसभाओं में वोट देने का अधिकार छोड़ना पड़ेगा।'

कैसे सुलझे गुत्थी पाकिस्तान की?

क़मर वहीद नक़वी, पत्रकार :

जो सबसे आसान काम था, वही हमने अब तक नहीं किया। हमने पाकिस्तान को व्यापार के लिए 'एमएफएन' यानी 'मोस्ट फेवर्ड नेशन' का दर्जा दे रखा है। इसे हमारी सरकार आसानी से वापस ले सकती है। लेकिन फिलहाल सरकार ने ऐसा नहीं किया।

मुस्लिम आबादी मिथ, भाग-दो!

क़मर वहीद नक़वी, पत्रकार :

बिहार के हिन्दुओं की जनसंख्या वृद्धि दर तमिलनाडु के हिन्दुओं के मुकाबले दुगुनी क्यों है? और केरल के मुसलमानों की जनसंख्या वृद्धि दर उत्तर प्रदेश के मुसलमानों के मुकाबले आधी क्यों है? केरल और लक्षद्वीप बड़ी मुस्लिम आबादीवाले राज्य हैं।

‘सिन्धु-साक्षी’ पॉवर से सुपरपॉवर!

क़मर वहीद नक़वी, पत्रकार :

दीपा करमाकर और साक्षी मलिक के परिवारों ने अपनी बेटियों की तैयारी के लिए खुद अपना घर-बार सब कुछ दाँव पर न लगा दिया होता, तो उनकी कहानियाँ आज किसी के सामने न होती। इनके और गोपीचन्द जैसों के लिए 'ईज ऑफ प्लेयिंग' जैसी कोई योजना बननी चाहिए न! 'ईज ऑफ डूइंग बिजनेस' के लिए तो हम बहुत काम कर रहे हैं, कुछ थोड़ा-सा काम 'ईज ऑफ प्लेयिंग' के लिए भी हो जाये!

चुन लीजिए, आपको क्या चाहिए!

क़मर वहीद नक़वी, पत्रकार :

पहला सवाल : अगर किसी सरकारी कर्मचारी, अफसर या न्यायिक अधिकारी को किसी अपराध के लिए सजा मिलती है, तो वह तो अपनी नौकरी पर कभी वापस नहीं रखा जा सकता, तो फिर ऐसा ही पैमाना राजनेताओं के लिए क्यों नहीं अपनाया जाना चाहिए? सजायाफ्ता नेता पर आजीवन रोक क्यों नहीं लगनी चाहिए?

तीन तलाक की नाजायज जिद!

क़मर वहीद नक़वी, पत्रकार :

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के तर्क बेहद हास्यास्पद है। एक तर्क यह है कि 'पुरुषों में बेहतर निर्णय क्षमता होती है, वह भावनाओं पर क़ाबू रख सकते हैं। पुरुष को तलाक़ का अधिकार देना एक प्रकार से परोक्ष रूप में महिला को सुरक्षा प्रदान करना है। पुरुष शक्तिशाली होता है और महिला निर्बल। पुरुष महिला पर निर्भर नहीं है, लेकिन अपनी रक्षा के लिए पुरुष पर निर्भर है।' बोर्ड का एक और तर्क देखिए। बोर्ड का कहना है कि महिला को मार डालने से अच्छा है कि उसे तलाक़ दे दो।

‘आप’ की झाड़ू, ‘आप’ पर!

क़मर वहीद नक़वी, पत्रकार :

आम आदमी पार्टी का बनना देश की राजनीति में एक अलग घटना थी। वह दूसरी पार्टियों की तरह नहीं बनी थी। बल्कि वह मौजूदा तमाम पार्टियों के बरअक्स एक अकेली और इकलौती पार्टी थी, जो इन तमाम पार्टियों के तौर-तरीकों के बिलकुल खिलाफ, बिलकुल उलट होने का दावा कर रही थी। उसका दावा था कि वह ईमानदारी और स्वच्छ राजनीतिक आचरण की मिसाल पेश करेगी। इसलिए 'आप' के प्रयोग को जनता बड़ी उत्सुकता देख रही थी कि क्या वाकई 'आप' राजनीति में आदर्शों की एक ऐसी लकीर खींच पायेगी कि सारी पार्टियों को मजबूर हो कर उसी लकीर पर चलना पड़े।

परोसिए नहीं, अब कलछुल दीजिए!

क़मर वहीद नक़वी, पत्रकार :

इधर आम्बेडकर नाम की लूट मची है, उधर 'मिलेनियम सिटी' गुड़गाँव के लोग अब गुरुग्राम में दंडवत होना सीख रहे हैं! देश में 'आम्बेडकर भक्ति' का क्या रंगारंग नजारा दिख रहा है! रंग-रंग की पार्टियाँ और ढंग-ढंग की पार्टियाँ, सब बताने में लगी हैं कि बाबा साहेब भीमराव आम्बेडकर में तो उनके 'प्राण' बसते हैं। और 'आम्बेडकर छाप' की सबसे पुरानी, सबसे असली दुकान वही हैं! सब एक-दूसरे को कोसने में लगे हैं कि आम्बेडकर के लिए और दलितों के लिए पिछले 68 सालों में किसी ने कुछ नहीं किया। जो कुछ किया, बस उन्होंने ही किया!

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