Tag: Ravana
शुभस्थ शीघ्रम्
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मुश्किल ये है कि हम लोग अपनी जिन्दगी एक धारणा पर जीते चले जाते हैं। हम मान लेते हैं कि जो अच्छा है, उसी की बातें सुननी हैं। हम बहुत सी उन विद्याओं पर अमल नहीं करते, जिनके विषय में हमारे मन में बुरी भावनाएँ होती हैं, या जिनकी छवि ठीक नहीं होती।
रावण तुम्हें मर ही जाना चाहिए
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
ये कहानी है गीता की। ये कहानी है परी की। ये कहानी है हैवानियत की। ये कहानी है इंसानियत की।
“देंगे वही, जो पायेंगे इस जिन्दगी से हम!”
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
कई लोगों ने अनुरोध किया है कि मुझे त्रेता और द्वापर युग से निकल कर 21वीं सदी की बातें लिखनी चाहिए। मुझे प्यार मुहब्बत की कहानियाँ लिखनी चाहिए।
गलती चाहे जिससे हो, सजा मिलती ही है
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
"हे राम! मैं प्रचेता का दसवाँ पुत्र रत्नाकर, जिसने ‘मरा-मरा’ जपने में खुद को भुला दिया और जिसके शरीर को चीटिंयों ने बांबी समझ कर अपना परिवार बसा लिया, जिसे उन बांबियों की बदौलत वाल्मिकी नाम मिला है, वो आपके सामने हाथ जोड़े खड़ा है।
हे राम! मेरे पिता वशिष्ठ, नारद और भृगु के भाई हैं।