Tag: Relationships
रिश्ते तभी चलते हैं, जब दोनों छोड़ना जानते हों

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
कुछ दिन पहले मैं अपने एक मित्र के घर गया था। मैं मित्र के घर बहुत दिनों के बाद गया था और इस उम्मीद से गया था कि मेरा मित्र मुझसे मिल कर बहुत खुश होगा।
परंपराओं की जंजीरों में जकड़ी लड़कियाँ

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
आइए आज आपको एक लड़की से मिलवाता हूँ।
बदलता भोपाल

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
आधी रात को चार शराबियों की निगाह ताजमहल पर पड़ गयी। चारों को ताजमहल बहुत पसन्द आया। उन्होंने तय कर लिया इतनी सुन्दर इमारत तो उनके शहर में होनी चाहिए थी। पर कमबख्त सरकार कुछ करती ही नहीं। क्यों न हम चारों रात के अंधेरे में सफेद संगमरमर की इस इमारत को चुरा कर अपने शहर ले चलें!
प्यार का बँटवारा

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
दो दिन पहले मेरे पास एक मिस्त्री का फोन आया था। मैं उसे जानता था। तीन-चार साल पहले उसने मेरे घर में रंगाई-पुताई का काम किया था और तभी अपना नंबर मुझे दे गया था। मिस्त्री को पता था कि मैं पत्रकार हूँ। एक बार वो काम करके चला गया तो फिर मेरा उससे कोई संपर्क नहीं रहा।
कोट मुक्ति

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
प्रेम की बात करते-करते मैं निकल पड़ा हूँ धर्म यात्रा पर। एकदम अचानक, एकदम अप्रायोजित।
परिवार और रिश्ते

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
मेरी साली के बेटे से स्कूल टीचर ने उसके परिवार की तस्वीर बनाने के लिए कहा।
विकल्प न हो तो, जो है उसमें खुश रहिये

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
मेरे फुफेरे भाई के पास एक जोड़ी हवाई चप्पल थी। चप्पल क्या, समझिए ऊपर रंग उतरा हुआ फीता था, नीचे घिसी हुई ऐड़ी थी। ऐड़ी इतनी घिसी हुई कि पाँव फर्श छूता था। लेकिन थी चप्पल।
मुश्किल में मित्र की पहचान होती है

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
जब माँ मुझे और इस संसार को छोड़ कर जा रही थी तब मैं नहीं सोच पाया था कि माँ के चले जाने का मतलब क्या होता है। मेरी नजर में माँ कैंसर की मरीज थी और भयंकर पीड़ा से गुजर रही थी।
अमर प्रेम


संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
बचपन में मैं कुम्हार बनना चाहता था।
भावे की हर बात भली, ना भावे तो हर बात बुरी

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
आज सोच रहा हूँ कि सु़बह-सु़बह आपसे वो बात बता ही दूँ जिसे इतने दिनों से बतान के लिये मैं बेचन हूँ।









