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संपूर्णता मिलन में है

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
उस 'येलेना' से मैं दुबारा नहीं मिल पाया, जिसकी मैंने चर्चा की थी। हालाँकि जब मैंने येलेना की कहानी आपको दुबारा सुनानी शुरू की थी, तब मैंने यही कहा था कि ताशकंद से लौटते हुए एयरपोर्ट पर नीली आँखों वाली जो लड़की मुझे मिली थी और जिसने मेरी मदद की थी, उसमें भी मुझे येलेना ही दिखी थी। चार दिन पहले मैंने येलेना की कहानी शुरू की थी और यह शुरुआत उसी मुलाकात के साथ हुई थी।
माँ हर मुसीबत से बचाती है

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
पिछले कई दिनों से मुझे खाँसी थी। दिन भर तो ठीक रहता, पर रात में खाँसी आती तो नींद खुल जाती।
यादों की लहरें

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
मुझे बचपन में तैरना नहीं आता था, लेकिन अमेरिका में जब मैं अपने बेटे को स्वीमिंग क्लास के लिए ले जाने लगा, तो मैंने उसके कोच की बातें सुन कर तैरने की कोशिश की और यकीन मानिए, पहले दिन ही मैं स्वीमिंग पूल में तैरने लगा।
दूसरी बड़ी सभ्यता रोम

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
जब आप मेरी पोस्ट पढ़ रहे होते हैं, मैं सातवें आसमान की सैर कर रहा होता हूँ। आप एक-एक पंक्ति पढ़ते हैं और मैं उस आसमान से आपके चेहरे की मुस्कुराहट को महसूस करता हूँ। फिर आप लाइक बटन दबाते हैं और मैं खुशी के मारे आसमान में ही नृत्य करने लगता हूँ। यही है प्यार।