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बीच सड़क पर हनुमान चालीसा पाठ

संदीप त्रिपाठी :
राजधानी दिल्ली में मंगलवार (30 अगस्त 2016) की शाम आठ बजे लक्ष्मीनगर मेट्रो से निर्माण विहार मेट्रो की ओर जाने पर कुछ ही दूर पर एक अजीब नजारा दिखा।
दऊआ पहलवान गली

आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
भद्र नाम था उस सड़क का -विद्यानिधि सर्वनाथ चंद्रालंकार मार्ग। पर सब उसे दऊआ पहलवान गली के नाम से ही जानते थे। दऊआ पहलवान स्थानीय गुंडे थे एक जमाने में, उनका नाम लेकर उस गली के शरीफ बाशिंदे पुलिस को डराते थे और नवोदित गुंडे दूसरे मुहल्ले के गुंडों को डराते थे।
ये तीस जनवरी मार्ग है….

विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
ये तीस जनवरी मार्ग है। एक सड़क का नाम है। पर ऐसी सड़क जो एक एतिहासिक घटना की गवाह बन गयी। एक महान आत्मा की यात्रा जो गुजरात के शहर पोरबंदर से शुरू हुई थी यहाँ आकर खत्म होती है। वह 30 जनवरी 1948 का दिन था जब 79 साल की एक महान आत्मा हे राम के शब्द के साथ इस दुनिया से कूच कर गयी। हालाँकि बापू तो आत्मशक्ति से 125 साल जीना चाहते थे। पर नियति को कुछ और ही मंजूर था।
महाबलीपुरम का लाइट हाउस

विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
बस स्टैंड से पंच रथ के रास्ते में महाबलीपुरम का लाइट हाउस भी पड़ता है। आप इस पर चढ़ायी भी कर सकते हैं। इस 42 मीटर ऊंचे लाइट हाउस के लिए प्रवेश टिकट है। लाइट हाउस समुद्र में चलने वाले नाव और जहाज को रास्ता दिखाने के मकसद से बनाया जाता है। साल 2011 में इस सैलानियों के लिए खोला गया।
भीड़ के पीछे दूल्हा चलता है, सेनापति तो आगे चलता है

रत्नाकर त्रिपाठी :
बनारस की सड़क पर इतना बड़ा जमावड़ा देखे मुद्दत हो गयी थी। अद्भुत दृश्य था, अगर ये मेला होता, तो इसे बनारस की नाग-नथैया और नाटी-इमली के भरत-मिलाप की तरह लक्खा मेले का दर्जा मिल जाता। माँ गंगा की गोद में मूर्ति विसर्जन की माँग लेकर आबाल-वृद्ध सड़क पर थे। भीड़ की खूबसूरती ये थी कि 80 % लोग एक-दूसरे को जानते नहीं थे, लेकिन 'एक मांग-एक धुन', उन्हें आपस में माला के मोतियों की तरह पिरोये हुई थी।
दशरथ माँझी ने की थी गया से दिल्ली तक पदयात्रा

विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
पहाड़ का सीना चीर कर सड़क बनाने वाले दशरथ माँझी के जीवन पर अत्यंत खूबसूरत फिल्म बनी है माँझी द माउंटेन मैन। माँझी ने अपने जीवन काल में एक बार रेलवे ट्रैक से होते हुए पैदल ही गेहलौर से दिल्ली की 1400 किलोमीटर की दूरी तय की थी।